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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 236 की, जिनमें प्रमुख हैं, सन्मति जैन निकेतन, नरिया, वाराणसी, (1946) श्री गणेश वर्णी जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी (1944), संस्थापक सदस्य श्री गणेश वर्णी दि) जैन इंटर कालेज, ललितपुर (1946), श्री गणेश वर्णी दि) जैन (शोध) संस्थान, वाराणसी (1971) आदि। आपने ‘शान्ति सिन्धु' (सोलापुर) और 'ज्ञानोदय' (वाराणसी) पत्रिकाओं का सम्पादन किया एवं 'जैन तत्त्वमीमांसा', 'जैन तत्त्व समीक्षा का समाधान', 'अकिञ्चितकर- एक अनुशीलन', 'परवार जाति का इतिहास' आदि ग्रन्थरत्न समाज को दिये। पं() जी के व्यक्तित्व और सामाजिक, धार्मिक तथा राष्ट्रीय क्षेत्र में उनके अवदान को इस तथ्य से रेखाङ्कित किया जा सकता है, कि पं०) जी के समकालीन स्व() पं() कैलाशचंद शास्त्री, स्व0 पं0 जगमोहन लाल शास्त्री एवं स्व() पं() जी रत्नत्रयी के नाम से विख्यात रहे हैं। स्व() पं() कैलाशचंद शास्त्री ने लिखा है- 'हम तो उन्हीं के अनुवादों को पढ़कर सिद्धान्त ग्रन्थों के ज्ञाता बने हैं।' श्री पं() जगमोहन लाल जी के शब्दों में 'उम्र में तो वे हमसे चार माह बड़े हैं, परन्तु ज्ञान में तो सैकड़ों वर्ष बड़े हैं। ' भारतीय संविधान के निर्माता डॉ० भीमराव अम्बेडकर बौद्ध धर्म अपनाने से पूर्व जैन धर्म स्वीकार करना चाहते थे। यह बात स्व0 पां) जी ने अपने एक साक्षात्कार में बताई थी। यह साक्षात्कार हमने पं() जी के हस्तिनापुर ( उ ) प्र0) स्थित आवास पर जनवरी 1989 में लिया था। इसका कैसेट हमारे पास सुरक्षित है। इस अवसर पर श्री नरेन्द्र भंडारी एडवोकेट, सागर भी उपस्थित थे। पं0 जी ने कहा कि 'अम्बेडकर से हम और महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य मिले थे। हम उनके पास गये, बातचीत के बाद हमने प्रश्न किया कि " आपने बौद्ध धर्म क्यों स्वीकार किया, जैन धर्म स्वीकार क्यों नहीं किया।" वे बोले - " जैनधर्म में जातिवाद आज मुख्य है। बौद्ध धर्म में जातिवाद की स्वतंत्रता संग्राम में जैन मुख्यता नहीं है। यदि हम जैन बनते और अपने अनुयायियों से कहते कि जैन बन जाओ तो ये जातिवाद आडे आ जाता। हमें बराबरी का दर्जा नहीं मिलता और हम अछूत के अछूत बने रह जाते। इसलिए हमने जैन धर्म को नहीं चुना है, बौद्ध धर्म चुना है, बौद्धधर्म में ये जातिवाद की प्रथा नहीं है। यह अवश्य है कि हमने बम्बई के पास बौद्ध केन्द्र स्थापित किया है, वहाँ पर जैन मंदिर आप बनवा दें तो हम उसको स्वीकार कर लेंगे।" पं() जी की महनीय सेवाओं से अभिभूत और उपकृत जैन समाज ने उन्हें 1985 में एक विशाल अभिनन्दन ग्रन्थ भेंटकर सम्मानित किया था। दिनांक 31 अगस्त 1991 को रुड़की में पं() जी का निधन हो गया । (आ) - (1) जै) स) रा0 अ0, (2) र) नी), पृष्ठ-66 (3) पं() फूलचंद शास्त्री अभिनन्दन ग्रन्थ ( 4 ) सा() (5) प(0) जै) इ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री बंगालीमल जैन अपने साथी ही जिनके मुखविर बन गये, ऐसे आगरा (उ0प्र0) के श्री बंगालीमल जैन को 1942 में पुलिस ने नजरबंद किया था तथा तोड़-फोड़ आदि के मामलों में फँसाया था। इस केस में आपके अन्य तीन साथी मुखविर बन गये थे। बाद में जब अपराध प्रमाणित नहीं हो सका तो आप मुक्त कर दिये गये। आ)- (1) जै) स) रा) अं) (2) उ0 प्र0), जै० ध०, पृष्ठ-90 श्री बंशीधर वैसाखिया एक बार जेल की जली, कच्ची, मोटी ज्वार की रोटी खाकर तमाम जिंदगी वैसी ही मोटी ज्वार की रोटी खाने का व्रत लेने वाले श्री बंशीधर वैसाखिया का जन्म 1878 में नरसिंहपुर (म0प्र0)) में हुआ। आपके पूज्य पिता परमेश्वरदास वैसाखिया साधारण गृहस्थ थे। उस समय अंग्रेजी की चार क्लास पढ़ लेना भी बहुत समझा जाता था । वंशीधर जी इससे अधिक विद्यालाभ न कर सके। स्थानीय स्कूल में एक बार शिक्षक का For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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