SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रथम खण्ड 193 न्यायाचार्य के पास आ गये। यहीं राष्ट्रीयता का खुला कालेज वाराणसी से मेरा पृथक्करण पहले ही हो चुका था । ' वातावरण पाकर आजीवन खादी पहिनने एवं देश को स्वतंत्र कराने की प्रतिज्ञा ली। आ)- (1) जै० स० रा० अ० ( 2 ) स्व0 प) अगस्त 1942 की जनक्रान्ति में दमनचक्र अपनी चरम सीमा पर था । अखबार बन्द कर दिये गये थे। 16 अगस्त के 'सोनारपुरा गोलीकांड', जिसमें स्याद्वाद महाविद्यालय के सभी छात्र मौजूद थे, के उपरान्त सभी कार्यकर्ता अलग-अलग जिम्मेदारी लेकर गाँवों में फैल गये । क्रान्ति का अलख जगाने के लिये हाथ के प्रेस द्वारा 'रणभेरी', 'शंखनाद' जैसे परचे छापने एवं वितरण करने की जिम्मेदारी आपने अपने साथियों के साथ ली। जन्माष्टमी के दिन 3 सितम्बर 1942 को रात्रि में निशात सिनेमा हाल, गोदौलिया में एकत्रित जन समूह का आपने लाभ उठाया, फलतः परचे बांटते समय अनेक साथियों के साथ गिरफ्तार कर जेल भेज दिये गये। आपको 3 सितम्बर 1942 से 7 अक्टूबर 1942 तक अन्डर ट्रायल, 8 अक्टूबर 42 से 6 फरवरी 1943 तक सश्रम कारावास की सजा हुई। स्वतंत्रता आन्दोलन के सन्दर्भ में आपसे अनेक बार चर्चा हुई। आपने बताया कि - ' फरवरी 1943 काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित एम०जी० ऑफिस को बम से उड़ाने के बाद, साथियों से शस्त्रास्त्र एवं अप्रयुक्त सामान लेकर उन्हें सामने गंगाघाट की बालू में छिपाने का कार्य मैंने व अन्य साथियों ने सफलता पूर्वक किया था। स्याद्वाद महाविद्यालय से संघर्ष जारी रखने की खबर सरकार को निरन्तर मिलती रही। जब 1944 में आन्दोलन समाप्तप्रायः था तब श्री टीकाराम डी()आई()जी() (गुप्तचर) लखनऊ के नेतृत्व में जैन विद्यालय एवं निकटस्थ जैन मंदिर में छापा मारा गया। बड़ी संख्या में गंगा जी को भेंट चढ़ाने के बावजूद भारी मात्रा में शस्त्र बरामद हुये। तीन साथी अमृतलाल जैन, गुलाबचन्द जैन और घनश्यामदास गिरफ्तार हुये । मैं व अन्य साथी वहाँ से हटकर भूमिगत हो गये । आन्दोलन में भाग लेने के कारण क्वींस Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री धर्मचंद जैन A श्री धर्मचंद जैन, पुत्र - श्री गोपाल चंद का जन्म 1920 में ग्राम - दाहोद, जिला - रायसेन (म0प्र0) में हुआ। 1942 के आन्दोलन में आपने लगभग तीन माह भोगा। का कारावास म0प्र0 के मुख्यमंत्री श्री प्रकाशचंद सेठी द्वारा आपको प्रशस्तिपत्र भेंट कर सम्मानित किया गया था। आ - ( 1 ) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-5, पृ0-73 (2) 740 40 श्री धर्मचंद जैन श्री धर्मचन्द जैन का जन्म 1924 में पन्ना (म0प्र0) जिले के ककरहटी गांव में हुआ। आपके पिता का नाम श्री फदालीलाल जैन था। बाद में धर्मचंद जी सागर (म0प्र0) में आकर रहने लगे और 'मस्त' उपनाम से विख्यात हो गये। आजादी के आन्दोलन में तन-मन-ध न से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले धर्मचंद जी ने आजादी की लड़ाई के दिनों की यादों बताया ‘16 वर्ष की उम्र में ही पढ़ना छोड़कर मैंने सक्रिय रूप से आंदोलन में भाग लिया और अंग्रेजों और पुलिस से छिप-छिप कर जनता में आजादी की लहर फूंकने के लिए पर्चे बांटता रहा. को ताजा करते हुए 1942 में गांधी जी के 'करो या मरो' के आह्वान पर चकराघाट पर आयोजित आम सभा के दौरान For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy