SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 91 प्रथम खण्ड पीटा गया कि मैं तीन दिन तक बेहोश रहा, शरीर में उसके संरक्षक पद पर रहा। हरिजन सेवक संघ का अनेक चोटें आयीं जो आज भी बद्दल होने पर उक्त सदस्य रहने के कारण हरिजनों को मंदिर-प्रवेश घटना की याद दिला देती हैं। मैं टीकमगढ़ शहर से कराने में अग्रणी रहा। अन्य राजनैतिक, सामाजिक नौ मील दूर इन्टीरियल में था। जब टीकमगढ़ श्री आंदोलनों में समय-समय पर समर्पण की भावना से सरदार सिंह तथा श्री मगनलाल गोइल्ल को खबर सक्रिय योगदान देता रहा।' मिली तब वह ग्राम कारी आये और मुझे बेहोशी की पिता से विरासत में प्राप्त गरीबी, राष्ट्रहित में हालत में खटिया पर रखकर टीकमगढ़ अस्पताल में समर्पित जवानी और बुढ़ापे में पुत्री और उसके बच्चों भर्ती करवाया।' का भार, क्षीण होती आंखें, समाज की उदासीनता इन ___1946 में उत्तरदायी शासन प्राप्ति हेतु चरखारी सबने श्री जैन को तोड़ दिया है। हम उनके दीर्घायुष्य जेल में जाना पड़ा। चरखारी जेल में 2 माह 10 दिन की कामना करते हैं। तक बंद रहा। जेल से छूटने के बाद सरीला, बाबनी, आ0 (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, 2/125, (2) स्व) प0 बिजावर, छतरपुर, मैहर, पन्ना, नागोद आदि स्थानों बाबू अजितप्रसाद जैन । पर जाकर आंदोलन हेतु लोगों को तैयार करता रहा।' भारतीय संविधान निर्मातृ सभा के सदस्य रहे, जीवन का सबसे दुखद पहलू बताते हुये श्री सहारनपुर (उ0प्र0) के बाबू अजितप्रसाद जैन का जैन ने लिखा है-'जब मैं जेल में बंद था तब मेरी जन्म 6 अक्टूबर 1902 को मेरठ (उ0 प्र0) में पत्नी श्रीमती कस्तूरी देवी बीमार पड़ी। मुझे मिलने के हुआ। आपके पिता का नाम लिये पैरोल पर जाकर इलाज के लिये कहा गया श्री मुकुन्दलाल तथा माता लेकिन मैंने बाकी के साथियों को छोड़कर जाना का नाम दुर्गा देवी था। ग्यारह उचित नहीं समझा। आखिरकार वह स्वर्ग सिधार भाई- बहिनों में आप आठवीं गयी, मुझे मिल ही न सकी। अमानत के रूप में एक सन्तान थे। सात बहिनों के पुत्री पुष्पा देवी को ग्यारह माह का छोड़ गयी, बाद जन्म होने के कारण जिसका पालन किया और फिर उसका विवाह किया आपका लालन-पालन बहुत था परन्तु उसके पति ने इंदौर जाकर दूसरी शादी कर लाड़-प्यार से हुआ। आपकी शिक्षा मेरठ, मसूरी, ली। वह परित्यक्ता, उसके सभी बाल बच्चे मेरे साथ सहारनपर, लखनऊ आदि शहरों में हुई। लखनऊ से रह रहे हैं व मेरे ही आश्रित हैं।' वकालात की परीक्षा पास कर आप सहारनपुर में अपने राजनैतिक कार्यों को बताते हुए आपने वकालात करने लगे और वहीं के स्थायी निवासी हो लिखा है-'ओरछा राज्य में जितने भी राजनैतिक आंदोलन गये। छात्र जीवन में आपने आन्दोलनों में भाग लिया। चलाये गये उन सब में मैं भागीदार रहा। रचनात्मक 1925-26 के आस-पास आपने राजनीति में प्रवेश कार्यों के अन्तर्गत विदेशी वस्त्रों का त्याग कराया। किया। अस्पृश्यता निवारण में अग्रणी रहा। उसी के फलस्वरूप अछूतोद्धार, चरखा चलाना आदि कार्य उन समाज से बहिष्कृत रहा। 1946 में विद्यार्थी आंदोलन दिनों की राजनीति के महत्त्वपूर्ण अंग थे, सहारनपुर में विद्यार्थियों का साहस बंधाया तथा आंदोलन में में इस प्रकार के रचनात्मक कार्यों का प्रारम्भ 1921 साथ रहा। 'वीर बाल मंडल' का गठन किया तथा में हो गया था। बाबू झुम्मन लाल जैन इसके अगुआ For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy