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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 90 क्या वह चिखते नहीं थे ? आप इस बारे में सूक्ष्म निरीक्षण करके मुझे लिखें। यदि यह प्रथा हरिजनों में सर्वसाधारण है तो हमारे बड़ा आन्दोलन करना होगा। अगर जैसे आप लिखते हैं वैसे हर जगह होता होगा तो यह भयंकर पाप हरिजनों का नहीं हमारा है, वैसा मैं मानूंगा हमने उसकी घोर उपेक्षा की है उसका हि यह परिणाम हो सकता है। आपका मो० क० गाँधी (नोट- पत्र में जिस प्रकार की भाषा है। वह वैसी ही दे दी है। ) (साभार- सेठ अचल सिंह अभि0 ग्रन्थ, पृष्ठ 105 ) सेठ जी को अपने जीवन में अनेक सम्मान मिले, 1974 में एक वृहद् अभिनन्दन ग्रन्थ उन्हें भेंट किया गया था। जिसके सम्पादक श्री प्रताप चंद जैसवाल हैं। 22 दिसम्बर 1983 को सेठ जी का निधन हो गया। आ)- (1) सेठ अचल सिंह अभिनन्दन ग्रन्थ, (2) नैतिक जीवन दर्पण (3) अचल चरित, (4) इ० अ० ओ० 2/393 (5) जै० स० रा० अ० ( 6 ) गो० अ० ग्र०, पृ0 217 218 (7) उ0प्र0 जै) ध०, पृ0 89 ( 8 ) अमर उजाला, आगरा (9) जिनवाणी, जनवरी 1984 हुआ । 21 वर्ष की अल्पायु स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। श्री अजितकुमार जैन श्री अजितकुमार जैन का जन्म उत्तर प्रदेश के ग्राम- कैलगुंवा, तहसीलमहरौनी, जिला झांसी में संभ्रान्त नागरिक, धर्मप्रेमी श्रीमान् पंडित मुन्नालाल जैन सतभैया के घर दिनांक 24 अक्टूबर 1914 को में ही आप 1941 के व्यक्तिगत Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वतंत्रता संग्राम में जैन सत्याग्रह में आप कार्य करते रहे तथा 1942 में जब बापू ने 'करो या मरो' का नारा दिया तब आंदोलन के कारण इनका तथा भगवानदास जोशी, कैलगुवां का वारंट कटा । आप फरार ( भूमिगत) होकर ओरछा राज्य स्टेट में आकर 'ओरछा सेवा संघ' के सक्रिय सदस्य बने और 'ओरछा सेवक संघ मंडल' ग्राम कारी के मंत्रीपद पर कार्य करने लगे। तभी आप पं० श्री लालाराम बाजपेई, पं० चतुर्भुज पाठक, नारायणदास खरे, बाबूलाल मामुलिया, सुन्नु लाल नापित आदि के संपर्क में आये। अपना राजनैतिक परिचय व अपने संस्मरण देते हुए आपने लिखा है- 'जब मैं भूमिगत रहकर कार्य कर रहा था तब तहसीलदार श्री राज बहादुर सिंह उर्फ हंटर बहादुर का दौरा हुआ, उसमें बेगार में साहब बहादुर तथा उनके स्टाफ के लेटने के वास्ते चर्मकारों के यहां से खटिया, कुम्हारों के यहाँ से मिट्टी के कोरे बर्तन, ढीमरों को पानी भरने के लिए तथा साहब बहादुर की पालकी उठाने के लिए पकड़ लिया जाता था तथा बनियों के यहां से भोजन सामग्री आदि बेगार में आती थी। तहसीलदार का स्वागत ऐसे होता था जैसे किसी दूल्हे का स्वागत हो रहा हो, बैण्ड बाजे के साथ ग्राम के संभ्रान्त नागरिकों को लेने जाना पड़ता था । पालकी में सवार तहसीलदार जैसे दूल्हा हो, प्रत्येक घर पर उनका टीका होता था, जो साहब बहादुर की जेब खर्च के काम आता था, परंतु मजदूरों की मजदूरी नहीं दी जाती थी न ही बनियों को रसद का पैसा । यदि दिया भी गया तो साल छः महीने बाद, वह भी आधा-अधूरा । मेरे विरोध करने पर तहसीलदार ने राजा से शिकायत की जिसके परिणामस्वरूप मुझे गिरफ्तार कर मोहनगढ़ में बंद रखा गया । 'राजपूत सेवा संघ' राजा जागीरदारों द्वारा बनाया गया गुट था। जिसका विरोध करने पर मुझे इतना For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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