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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 64 स्वतंत्रता संग्राम में जैन प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी श्री गोपाल प्रसाद तिवारी ने अपने संस्मरण- 'मैंने देखी है उदयचंद जैन की शहादत' में लिखा है- '...........(जब) लोग भागने लगे तब मैंने श्री उदयचंद जैन से कहा कि-"कहीं ऊँचे स्थान पर खड़े होकर जनता को प्रदर्शन करते रहने को कहो, मैं भीड़ में घुसकर लोगों को इकट्ठा करता हूँ।" इस पर श्री उदय चंद कुएं की पनघट पर चढ़ गये और जनता से शान्तिपूर्ण प्रदर्शन जारी रखने का अनुरोध करने लगे। जनता पुनः इकट्ठी होकर नारे लगाने लगी। लोग रोष में थे किन्तु प्रदर्शन शान्तिपूर्ण था। मजिस्ट्रेट श्री मालवीय ने पुनः लोगों से घर चले जाने की चेतावनी दी, अन्यथा गोली चलाने की मंशा बताई।' पुलिस की ज्यादतियों को श्री सरमन लाल गौतम और श्री विजय दत्त झा बर्दाश्त नहीं कर पाये और उन्होंने पुलिस को बुरी तरह लताड़ा। उप जिलाधीश ने पुलिस को गोली चलाने का आदेश दिया। वीर उदय चंद ने अपनी छाती खोल दी। उन्होंने कमीज को फाड़ते हुए खींचा, जिससे कमीज का बटन टूट गया, उन्होंने पुलिस को ललकारा कि 'गोली चला दी जाये, वे उसे झेलने के लिए तैयार हैं' इस समय वे केसरिया रंग की आधे बाजू की खादी की कमीज और धोती पहने हुए थे। पुलिस की गोली चली वे इसको झेलने के लिए उचके और गोली पेट को चीरते हुए शरीर में घुस गई। 'भारत माता की जय', 'तिरंगे झंडे की जय' के साथ उदयचंद गिर पड़े और खून की नदी बह चली। वे बेहोश हो गये थे। लोग उन्हें उठाने के लिए दौड़े, लेकिन पुलिस ने लोगों को आगे नहीं बढ़ने दिया। लोग जहां के तहां खड़े रह गये। पुलिस ने लाठियों का स्ट्रेचर बनाया और उस पर उदय चंद के बेहोश और खून से लथपथ शरीर को डाल दिया। पुलिस उन्हें कुछ ही दूरी पर स्थित शासकीय अस्पताल ले गई। बाबूराम को महाराजपुर के एक बुजुर्ग सज्जन महाराजपुर ले गये। भीड़ अस्पताल की ओर दौड़ पड़ी। लोग पुलिस के खून के प्यासे हो उठे थे। पुलिस के घेरे में चिकित्सालय में उदय चंद की शल्य चिकित्सा की गई। उन्हें समीप के पेइंग वार्ड में ले जाया गया। छोटे-छोटे समूहों में पुलिस ने लोगों को उनके दर्शन करने दिये। लोगों ने उनके पैर छुए। नगर के सभी वर्गों के लोग अस्पताल की ओर दौड़ पड़े, कुटुम्बीजन दौड़े। शल्य चिकित्सा के उपरांत भी वे होश में नहीं आये। सभी लगातार 'भारत माता की जय', 'भारतवर्ष आजाद होगा' आदि नारे लगा रहे थे। मण्डला और आसपास के इलाके में तहलका मच गया। वे 15 अगस्त 1942 की रात्रि को तड़पते रहे और 16 अगस्त 1942 की प्रातः वीरगति को प्राप्त हो गये। उदय चंद मरकर भी अमर हो गये। ___ जिलाधीश श्री गजाधर सिंह तिवारी और पुलिस अधीक्षक श्री खान ने उदयचंद के पिताजी सेठ श्री त्रिलोकचंद को अपने निवास पर बुलाया। जिलाधीश ने उनसे कहा था कि 'अमर शहीद के शव का चुपचाप दाहसंस्कार कर दिया जाये।' त्रिलोक चन्द जी ने दृढ़तापूर्वक इसका विरोध किया। नगर निवासी प्रशासन से क्रुद्ध हो गये थे। हिंसा की आशंका से स्थानीय प्रशासन आतंकित हो उठा था। नगर के प्रतिष्ठित वकील श्री असगर अली और महाराजपुर के मुंशी इब्राहीम खान ने क्रमशः मण्डला और महाराजपुर के नागरिकों की ओर से स्थानीय प्रशासन को आश्वस्त किया कि 'शवयात्रा के जुलूस में हिंसा नहीं भड़केगी। हाँ! यदि पुलिस जुलूस में शामिल हुई तो खून-खराबा रोका नहीं जा सकेगा।' मण्डला नगर स्तब्ध था। वह अपने सपूत को अन्तिम विदा देते हुए रो रहा था। For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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