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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 63 14 अगस्त 1942 की शाम की गतिविधियों के सन्दर्भ में उदयचंद के एक साथी- प्रो0 चित्रभूषण श्रीवास्तव, शासकीय शिक्षा महाविद्यालय, जबलपुर (म0प्र0), ने अपने संस्मरण 'एक अन्तरंग प्रसङ्ग : अमर शहीद वीर उदय चंद के संग' में लिखा है- “14 अगस्त 1942 की शाम को मैं और उदय चंद नवजीवन क्लब से निकले। हम घूमने जा रहे थे। शाम के करीब 6 बजे होंगे। आकाश में बादल थे। पानी बरस कर निकल चुका था। हम लोग तहसील, कचहरी के पास पहुँचे ही थे कि वजनदार बूट पहने सिपाहियों के दल के मार्च की आवाज सुनाई दी। आगे देखा तो सशस्त्र सिपाहियों की एक टुकड़ी नीली वर्दी पहने, कंधों पर संगीन लगी बन्दूकें रखे, सड़क पर नगर की ओर बढ़ी चली आ रही थी। दल नायक बाजू से चलता हु आदेश देता जा रहा था --'लेफ्ट राइट-लेफ्ट..........।' हम दोनों सडक से पटरी पर आ गये। दल उसी चुस्ती से आगे बढ़ गया। बरगद के पेड़ के पास चौराहे पर रुका और वहाँ बन्दूकें दागी गईंहवाई फायर हुए। गोली चलने की आवाजें सुनकर हम दोनों ने, जो टाऊन हाल के पास पहुंच रहे थे, मुड़कर देखा, किंचित् भयभीत से। तभी दल नायक ने कुछ आदेश दिया और पुलिस दल कमानियाँ गेट की ओर मुड़कर फिर रूट मार्च पर आगे बढ़ गया। यह सब शायद जनता को आतंकित करने के लिए किया गया प्रदर्शन था।" वातावरण गम्भीर किन्तु शान्त था। उदय ने गम्भीर स्वर में आक्रोश से कहा- "ये गोली क्यों चला रहे हैं ? क्या इनकी गोलियों से आन्दोलन रुक जायेगा ? क्या पुलिस किसी को भी गोली मार सकती है? आखिर ये भी भारतीय हैं। इनके मन में भी देश के लिए तो प्रेम होना चाहिये!" ___ मैंने कहा था "हाँ होना तो चाहिये पर सरकार के नौकर हैं न ? जो आदेश होगा वही तो करेंगे। आज्ञा पालन न करने पर सजा या नौकरी से निकाले जाने का डर भी तो होगा इन्हें। आज्ञा पालन भी तो इनका कर्तव्य है।" भावावेश में उदय के उद्गार थे- “भगतसिंह और चन्द्रशेखर कभी पुलिस से नहीं डरे। डरना कायरता है। निडर होकर हर एक को दमन का मुकाबला करना चाहिये, यह हमारा कर्तव्य है यदि हम सीना खोल कर खड़े हो जायें तो ?" इस पर मुझे याद है- मैंने कहा था- "हो सकता है जनता को दबाने के लिए गोली चलाई जाये। क्या कह सकते हैं कि क्या होगा ? उन्हें जो सरकारी आदेश होगा वही करेंगे।" आदि। रात में भी उदयचंद घर नहीं गये अतः 15 अगस्त 1942 के प्रातः बाबूराम जी उदय चंद की तलाश में मण्डला आये। उन्हें पता चला कि नर्मदा गंज से जुलूस प्रारम्भ होने वाला है, वे वहां चले गये। वहीं पर उनकी भेंट उदय चंद से हुई। जुलूस का गन्तव्य जिलाधीश कार्यालय था। वहीं पर जुलूस सभा में परिवर्तित हो गया। तत्कालीन मण्डला नगर के हिसाब से यह जुलूस बहुत बड़ा था। सभा को श्री मन्नूलाल मोदी और श्री मथुराप्रसाद यादव ने संबोधित किया। तब सभा की बागडोर उदय चंद ने सम्हाली, उन्होंने लोगों से पत्थर नहीं फेंकने का आग्रह किया। इसी बीच पुलिस ने बर्बरता से लाठी चलानी शुरू कर दी। अनेक लोग पुलिस की लाठी के शिकार हुए। दोनों भाईयों को लाठियों की मार पड़ी। जुलूस तितर-बितर हो गया। उदयचंद ने बाबूराम को पीछे हटने का निर्देश दिया। बाबूराम इतवारी बाजार की ओर चले गये और घूमकर लकड़ी के पुल पर से होते हुए फतह दरवाजा प्राथमिक शाला के सामने पहुंच गये। तब पुलिस ने हवा में गोलियां चला दीं और लोगों को हट जाने का आदेश दिया। For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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