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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृताङ्गो ___ अन्वयार्थः ---(मुक्षावार्य) मृामदम् अपत्य भाषाम् वहिद्धं' मैथु रम् (उग्गह) अवग्रहम् (अजाइया) अयाचित , एतानि (लोगंसि सत्थादाणाई) लोके वादा. नानि-शस्त्रतुलपानि कर्मवध कारणानि च (तं विजं परिजाणिया) नत्-एनस विद्वान परिनानीयात्-अपरिज्ञया ज्ञात्वा प्रत्याख्यान परिज्ञया परित्यजे दति ।१०। टीका-अहिंसा प्रतिपाद्य मृगासदादिकं माह- मुसाशय' इत्यादि । 'मुसावाय' मृपावादम्-असत्य भाषाम् , तथा-'वहिद्धं' इति देशी यशब्दो मैथु गार्थः सेन मैथुनम् 'उग्गई' आग्रहं परिग्रहं च, तथा-'अनाइया' अयाचि म् अदत्ता दानमित्यर्थः, एतानि-असत्यभाषणादीनि पामिना निराधकानि साक्षात् परम्मश्या मैथुन सेवन करना 'उग्गह-अवग्रहस्' परिग्रह करना 'माया-प्रयाचितम्' तथा अदत्तादानलेना लोगसि सत्थादागाई-लोके शस्त्रादानानि' ये सब लोक में शस्त्र के समान और कर्म बन्धके कारण है' 'तं विजं परिजाणिया-एतत् सर्व विधान परिजानीयात्' विद्वान् पुरुष ज्ञ परिज्ञासे इसे जानकर प्रत्याख्यान परिज्ञासे इसे त्याग करे ॥१०॥ अन्वयार्थ--मृषायाद, मैथुन, अदत्तादान को भी लोक में शस्त्र के समान समझे। विद्वान इन्हें ज्ञपरिज्ञा से जानकर प्रत्याख्यान परिज्ञा से त्याग दे ॥१०॥ टीकार्थ--अहिंसा का प्रतिपादन करके मृषावाद आदि का कथन करते हैं-असत्यभाषण, मैथुन, परिग्रह और अदत्तादान, यह सब साक्षात् या परम्परा से प्राणियों की विराधना करने वाले हैं। अतएव ये से ४२ 'उगाह-अवग्रहमू' परिङ ४२वो 'अजाइया-अयाचित्तम्' तथा महत्तहान से लोगसि सत्थाद णाई-लोके शस्त्रादानानि' मा मा बाम शख सरमा भने मन्ना २५ ३५ छे. 'त'विजं परिजाणिया-एतत् सर्व विद्वान्. परिजानीयात्' विद्वान ५३५ ३५रिज्ञाथी माने जाने प्रत्याभ्यान परि. જ્ઞાથી તેને ત્યાગ કરે ૧૦ अन्वयार्थ-भूषापाई, भैथुन, परियड, महत्तानने पy a४मा शखनी બરાબર સમજવું. વિદ્વાન પુરૂષ આ બધાને જ્ઞપરિજ્ઞાથી જાણીને પ્રત્યાખ્યાન પરિજ્ઞાથી ત્યાગ કરે ૧૦ ટીકા અહિંસાનું પ્રતિપાદન કરીને મૃષાવાદ વિ. નું કથન કરે છે– અસત્ય ભાષણ, મૈથુન પરિગ્રહ, અને અદત્તાદાન આ બધા સાક્ષાત્ અથવા પરંપરાથી પ્રાણની વિરાધના કરવાવાળા છે. તેથી તે શસ્ત્ર સમાન છે. For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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