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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie सुरसुंदरी नवमो परिच्छेओ। नवमो चरि। परिच्छेओ। // 72 // अह भणइ चित्तवेगो सुरवर ! मह कहसु केण कञ्जण / तइया मणिं समप्पिय कत्थ गओ आसि तुरियगई ? ॥१शा तो भणइ | सुरो सुंदर ! निसुणसु एयपि बजरिअंत / अअ अहं आणत्तो ससिप्पहेणं तु देवेण / / 2 // गच्छ विहुप्पह ! खिप्पं जंबुद्दीवम्मि भरह खेत्तम्मि / नयरे कुसग्गनामे धणवाहणमुणिवरसमीवे / / 3 / / सो पुव्ववेरिएणं दिट्ठो झाणम्मि संठिओ तत्थ / तं देव कुविओ सो काही अइगरुयउवसग्ग // 4 // ता तस्स रक्खणट्ठा सिग्धं वच्चाहि तम्मि नयरम्मि / अहमवि इंदाणतिं समाणिउं आगमिस्सामि // 5 // | तत्तो तहत्ति भणिउ वेगेण समागओ अहं इहई / ताव य दइयासहिओ पैलायमाणो तुमं दिट्ठो // 6 // ओहिनाणेण मए नायं जह | एस सो हि विज्जुपहो। मह मित्तो नहवाहणभयाउरो वच्चए तुरियं // 7 // नहवाहणोवि एसो पेट्ठिविलग्गो इमस्स एइत्ति / ताहे | करेमि किंचिवि उवगारं पुन्वमित्तस्स // 8 // एवं विचिंतिऊणं तुम्ह समीवम्मि आगओ अहयं / तइया य मणी दिवो समप्पिओ जीवरक्खडा // 9 // तत्तो य गओ तुरियं धणवाहणमुणिवरस्स पासम्मि / दिट्ठो य मए देवो उवसग्गं तस्स कुणमाणो // 10 // भणियं *च मए रे ! रे! तियसाहम! कत्थ वच्चसे इण्हि / देविंदवंदियाणं मुणीण एवं करेमाणो?॥११।। उप्पायंतो पीडं मुणीण समस तुमित्तवग्गाणं / पाविट्ठ! कत्थ वच्चसि दिट्ठीमग्गम्मि मह पडिओ? // 12 // एवं च मए मणिए भवणवई सो सुरो ससंभंतो। नट्ठो * // 7 // 1 आज्ञप्तः आदिष्टः / त्वा / / इन्द्राशप्तिम् इन्द्रादेशम् / 4 दिट्ठो सि तुमं पुरो इंतो। 5 पृष्ठिः पीठम् / ससंभ्रान्तम्भयभीतः / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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