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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org वीवि चंदरेहा तसो आउक्खए चुया संती / उप्पमा वेयड्ढे नपरे सिरिकुंजरावत्ते // 235 / / खयरस्स अमियगइणो पियाए भजाए चित्तमालाए / कुच्छीए संभृया पियधूया कणगमालत्ति / / 236 / / युग्मम् // भो चित्तवेग! पुचि तुम्भं जो आसि रागसंबंधो / सामनमुवगयाणवि तस्स फलं एरिसं जायं / / 237 // रूवं बलं च दित्ती रिद्धीवि य आसि थेविया तुम्ह / देवभवे तुह आउं विमज्झिमं थेवयं आसि // 238 // एत्थवि माणुस्सभवे अवरोप्परदसणाओ आरम्भ / दुसहं विओयदुक्खं संजाय तुम्ह दोहंपि // 239 / / तुमएच्चिय अणुभ्यं विओपदुक्खं सुदूसहं जमिह / भो चित्तवेग! किंवा कहिएणं तेण तुह पुरओ? // 240 // काऊणवि सामन्नं सरा| गभावो तुमे न जं चत्तो / तस्स फलेणं एसा दूसहा तुह आवया जाया // 241 // देवभवे तुह मित्तो चंदज्जुणनामगो य जो आसि / चइऊण सोवि ततो चित्तगई एत्थ संजाओ॥२४२।। वसुमइनामा अन्जा देवी चंदप्पहा य दियलोए / सावि य पियंगुमंजरिनामा इह भद्द! उप्पन्ना // 243 // जं पुव्वसंगओ सो चित्तगई तेण तुम्ह संजाओ। अन्नोन्नं गुरुनेहो सुंदर ! सैइदंसणेणंपि // 244 // तेणं उवायपुवं घडिया सा तुज्झ कणगमालाओ। इहि सकम्मवसओ जाओ तुह तीइ सह विरहो // 245 / / भो चित्तवेग! बहुणा किंवा भणिएण एत्थ अन्नण ? / ज चेव आसि पुढे त चिय तुह ताव साहेमि // 246 / / कणगरहो सो साहू अइप्पिओ आसि तुज्झ अन्नभवे / तत्तो य देवलोए विहुप्पहो नाम जो देवो // 247 / / सो य अहं तुह वल्लहमित्तो अञ्जवि तत्थ वसामि दिवम्मि / कारणमिस्थमिमं तु पैडुच्च मे अइसंगयओ सि तुमति / / 248 // साहुधणेसरविरइयसुबोहगाहासमूहरम्माए / रागग्गिदोसविसहरपसमणजलमतभूयाए / // 249 / / एसो एत्थ समप्पइ चिरपरिचियवनणोत्ति नामेण / सुरसुंदरिकहाए अट्ठमओ वरपरिच्छेओ // 250 // ॥अट्ठमो परिच्छेओ समत्तो॥२०००॥ 1 स्तोकिका अल्पा / 2 चत्तो-त्यक्तः / 3 सह-सकृत् / 4 घटिता=संयोजिता / 5 प्रतीत्य / / संगतक=मैत्री। For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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