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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चरि। // 64|| | मणिप्पभावाओ होउमसमत्थं / पासे संभमिऊणं विज्झाय झत्ति तत्तो य // 44 // वारुणवायब्वाई पट्टवियाई कमेण सत्थाई / ताणिवि HT अट्टमो मणिप्पभावा हिच्चिय मह विलीणाई // 45 / / अह ताणि अमोहाणिवि पैडिहयसत्तीणि दट्टु सत्थाणि / जाओ विच्छायमुहो राय- परिच्छेओ। सुओ विम्हयक्खित्तो // 46 // खणमेगमच्छिऊणं पुणोवि सो एरिसं समुल्लवइ / रे खयराहम ! दप्पं मा हु करिजासि नियचित्ते // 47 // मह मंतस्स पभावा विजाए वावि ओसहीए वा / एमाई सत्थाई निहयपयावाई जायाई // 48 // ___जओ। मंतेण व तंतेण व इंतुं सकंति नेव एयाई / किंतु निसुणेसि कारणमेतेहिं जं न निहओ तं // 49 // एसो हु पावकारी | मुंहमच्चूए न चैव जोग्गोत्ति / ता हमारेण इमो मारेयध्वो तुमे कुमर ! // 50 // इय मज्झ सिक्खणत्थं हओ तुम नेव दिव्वसत्येहि / न उणो तुह विजाहि हम्मद सत्तीओ एएसिं // 51 / / युग्मम् // ता इण्हि मह न छुट्टसि पायालं जइवि पविससे मूढ ! / मोरो अहव धिप्पह हंत ! तइजम्मि उड्डाणे // 52 // रे खयराहम ! इहि कत्तो मह जासि दिहिपहपडिओ / दुहमच्चूए एसो मारेमि तुम न संदेहो // 53 // भो सुप्पइट्ठ! एवं भणिऊणं गरुयअभिनिवेसेणं / नहवाहणेण नागिणिविजा आवाहिया तत्तो // 54 // मीसणभुयगेहिं खणेण वेढियं उग्गविसवियारेहिं / सव्वंगेसु बद्धो सरागजीवोव्व कम्मेहिं // 55 // तत्तो महंतवियणा पाउन्भूया ममं तओ देहं / गयणाओ निवडिओ हं भुयंगभारेण भूमीए // 56 // वियणाए विम्भलंगो संवैलितरुणो इमस्स हिडम्मि / गयचेयणोव्व जाओ भुजंगसंघायउबद्धो // 57 / / सावि मह पाणदइया गरुयं ददृण आवयं ममं / अइदुक्खिया वराई रोयंता घुग्घरसरेण // 58 // 1 विच्यात विनष्टम् / 2 अमोघानि अव्यर्थानि / / प्रतिहता विनष्टय शक्तिर्येषां तानि / 4 विस्मयाऽऽक्षिप्तः / 5 सुखमृत्योः / / दुःखमारेण दुःखबहुलमरणैन / 7 मत् / " मयूरोऽपि / तृतीयस्मिन् / 1. उमाण उड्यनम् / " प्रादुर्भूता / 12 विद्यल व्याकुलम् मा यस्य स तथा / 11 शाल्म- // 6 // छीतरोः / 14 गद्गदस्वरेण / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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