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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | दान आपनारा केम न होय ? वली तलावो पण कमलाकरो ( कमलनुं उत्पत्ति स्थान ) बे, तो पी मनुष्यनां मंदिरो कमलाकरो ( लक्षीना जंकार रूप ) केम न होय ? अर्थात् राजगृह नगरमां मद करता हस्ति, उदार माणसो, कमल युक्त तलावो अने संपत्ति युक्त लोकोनां गृहो हतां ॥ १८ ॥ जे राजगृह नगरने विषे वाव्यो पण सुपयोधरा ( श्रेष्ठ जलने धारण करनारी ) वे, तो पठी स्त्रीजना समूहो सुपयोधरा वाप्योऽपि यस्मिन् सुपयोधराः स्युः, कथं पुनर्ने प्रमदासमूहाः ॥ "निस्वा लॅनंते प मैंले वैरेच्छाहारान् पुर्ननों कैंयमिन्यदाराः ॥ १ ॥ ( श्रेष्ठ स्तनने धारण करनारा ) केम न होय ? अर्थात् वाव्यो श्रेष्ठ जलने धारण | करनारी ने स्त्री श्रेष्ठ स्तनोने धारण करनारी बे. तेम ज निर्डव्य ( जीखारी लोको ) पण पोताना गलाने विषे वरेछाहारान् ( श्रेष्ठ इति आहारोने) पामे बे, तो पढी धनवंत पुरुषोनी स्त्री वरेछाहारान् ( श्रेष्ठ इति मुक्ताफलना श्रने | रत्न विगेरेना हारोने) केम पामे ? अर्थात् जीखारी पोताना गलाने विषे न For Private and Personal Use Only
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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