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सुलसा
॥१२॥
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शछित श्राहारने पामे वे अने धनवंत पुरुषोनी स्त्री श्रेष्ठ मुक्ताफल तथा सर्गरलो. रत्नोना हारोने पामे . ॥ १५ ॥ जे राजगृह नगरने विषे सुमन ( पुष्पो अने श्रेष्ठ मन) ना प्रफुटितपणाए करीने बगीचा तथा मुनि, ए बन्ने जणा सरखापणुं पामे दे. अर्थात् राजगृह नगरना बगीचार्ड पुष्पे करीने अने मुनि श्रेष्ठ मने
आरामनूम्यो मुनयोऽपि यस्मिन्, साम्यं लनंते सुमनोविकाशैः॥ गुणहंति सैंधर्मगुणं सहैव, योधैरैपूर्विकयैव देवाः॥२०॥ आनानिविश्रांतविशालकूर्चाः, सुतुंदिला ढौकितरत्नपात्राः॥
टोपविष्टा वणिजो "विनांति, लानाशया विघ्नहरा इवांत्र ॥२२॥ करीने हम्मेशां प्रफुल्लित होवाथी ते बन्ने समान देखाय . वली चतुर पुरुषो योका उनी साथे 'हुँ पहेलो हुँ पहेलो' एवा वादथी श्रेष्ठ धर्म रूप गुणने (धनुष्यनी दो | ॥१५॥ रीने) ग्रहण करे बे. अर्थात् योझा धनुर्धारी अने चतुर पुरुषो सदाचारी . ॥२॥श्रा all राजगृह नगरने विषे, नाजी पर्यंत विश्रांति पाम्या ने विशाल स्मश्रु (दाढी मूड) जेमना, ||
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