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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुलसा ॥११॥ ००००००००००००ककककककककककककककककककककक जे राजगृह नगरने विषे को जड़ हृदयवालो माणस न होवा। जडाशय ( जा लाशय) ए शब्द फक्त तलावने विषे ज प्रसिद्ध हतो भने कोइ खल माणस न होवाथी बीजिह्व ( वे जीजवालो) ए शब्द फक्त सर्पने विषे ज प्रसिक हतो. वली कोई असत्य बोलनार माणस न होवाथी खल ए शब्द तेल वेचनार घांचीना घरने । जलाशयाख्या सरसि प्रसिधा, विजिह्वशब्दो नुजगेषु यत्र ॥ फलोक्तिरेवोकसि तैलकस्य, कीनाशवाची यम एंव नान्यः॥१७॥ यस्मिन् सदानाः किल दंतिनोऽपि, कथं न वास्तव्यजना भवेयुः॥ सरांस्यपि स्युः कमलाकराणि, कथं न तन्मानवमंदिराणि ॥२७॥ विषे (कोई चीजने-खोलने) ज लागु पडतो हतो. तेम ज कोइ हिंसक माणस न होवाथी कीनाश ए शब्दथी यम ज कहेवातो हतो. अर्थात् राजगृह नगरने विषे|| ॥११॥ जड, खल, असत्यवाची अने हिंसक एमानुं कोइ नहोतुं. ॥ १७ ॥ जे राजगृह ।। नगरने विषे इस्ति पण दानवाला (मद करता) दे, तो पनी रहेनारा लोको | For Private and Personal Use Only
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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