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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir cxxxxxxxxxxxx ॥३॥ Xxxxxxxxxxxxxxxxx भगवाने कहेल विद्यमान जीवादि पदार्थोना माटे हितरूप ते सत्यभाषा, सेनाथी विपरीत स्वरूपवाळी ते मृषाभाषा, सत्य अने असत्य बन्ने स्वभाववाळी ते मिश्रभाषा ( सत्यमृषा) छे. अणहिगया जातीसुवि, सद्दो च्चिय केवलो असचमुसा। एया सभेयलक्खण, सोदाहरणा जहास त्रण भाषामां पण जे स्वीकारेली नथी, मात्र शब्दरूप ज छे ते असत्यमृषा-आमंत्रण अने आज्ञापन (हुकम कर) विगेरे विषयवाळी छे. आ चार भाषा भेद सहित, लक्षण सहित अने उदाहरण सहित सूत्रमा जेम कहेली छे तेम जाणवी. पुरुषना भेदर्नु निरूपण करवा माटे ज आ तेर सूत्रो-'चत्तारि वत्थे' त्यादि० स्पष्ट छे. विशेष ए के-शुद्ध वस्त्र--पवित्र तंतु विगेरे कारणवडे बनावेल होवाथी, वळी शुद्ध-नवीन मलना अभावथी अथवा पहेला शुद्ध हतुं अने हमणा पण शुद्ध ज छे. प्रथम भगना बे पदथी विपक्षभूत सुगम ज छे. हवे दार्टीतिकनी योजना कहे छे-'एवमेवे'त्यादि. शुद्ध-जात्यादिवडे शुद्ध, वळी निर्मल ज्ञानादि गुणपणाए अथवा कालनी अपेक्षाए 'चउभंगो'त्ति. चार भांगानो समुदाय ते चतुभंगी अथवा चतुर्भग. पुल्लिंगपणुं तो अहिं प्राकृतपणाथी छे. तेनो आ अर्थ-वसनी माफक चार भांगा पुरुषने विषे पण कहेवा. 'एव'मिति. जेम शुद्ध पदथी बीजा शुद्ध पदमा दार्टीतिक सहित चार भांगावाळू वस्त्र का, एवी रीते शुद्ध पद छ पूर्वपदमा जेने एवा परिणतपद अने रूपपदमां चार भांगावाला वस्त्रो 'सपडिवक्ख'त्ति० प्रतिपक्ष सहित (अशुद्ध परिणत विगेरे) दार्टीतिक (पुरुष) सहित कहेवा. ते आ प्रमाणे-'चत्तारि वत्था पन्नत्ता, तंजहा-सुद्धे नाम एगे सुद्धपरिणए चतुर्भगी' 'एवमेवे त्यादि० पुरुषजात Xxxxxxxxxx Ixxxxxxxxxxxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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