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उपयोगी विषयों का विवेचन किया है। उन्होंने ग्रन्थ के अन्त में अनेक उपयोगी परिशिष्ट भी जोड़े हैं । यह सब सामग्री बड़ी सावधानी से प्रस्तुत की गयी है और आशा की जाती है कि वह इस काव्यशास्त्र विषयक रचना के विषयों को समझने में पाठकों को बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। - प्रस्तुत ग्रन्थमालाने संस्कृत और प्राकृत भाषाओंके अनेक अप्रकाशित ग्रन्थों को प्रकाश में लाकर जैन साहित्य की स्मरणीय सेवा की है। हम श्रीमान् शान्तिप्रसाद जी और उनकी विदुषी पत्नी श्रीमती रमाजी के बहुत कृतज्ञ हैं कि उन्होंने इस ग्रन्थमाला के भार को बड़ी उदारतापूर्वक अपने कन्धोंपर वहन किया है । उनका यह कार्य जैन साहित्य के क्षेत्र में उत्साहपूर्ण कार्यकर्ताओं के लिए एक सुअवसर और चुनौती भी है। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं में लिखित अनेक छोटी बड़ी रचनाएं अभी भी प्राचीन भण्डारों में उपेक्षित पड़ी हुई हैं । हमारा अपने विद्वान् बन्धुओं से आग्रहपूर्वक निवेदन है कि वे इन रचनाओं को स्वच्छ रूप में सम्पादित कर प्रस्तुत करें जिससे हमारे देश का सांस्कृतिक दाय यथोचित रीति से समझा व सम्मानित किया जा सके। हमारी ग्रन्थमाला हेतु कृपापूर्वक इस ग्रन्थको सम्पादित करने के लिए हम डॉ० कुलकर्णी के बहुत कृतज्ञ हैं।
-हीरालाल जैन ___ -आ० ने० उपाध्ये
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