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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रधान सम्पादकीय शृङ्गारार्णव-चन्द्रिका के इस सम्पादन को भारतीय विद्या के प्रेमियों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें बड़ी प्रसन्नता हो रही है। यह रचना संस्कृत काव्यशास्त्र विषयक है जो अभी तक अप्रकाशित थी। इसके कर्ता मुनीन्द्र विजयकोति के शिष्य विजयवर्णी थे और उन्होंने इसे कर्नाटक प्रदेशीय वंगवाडि के कामिराज नामक नरेश की प्रार्थना से बनाया था। ये नरेश १३वीं शती के अन्त में हुए माने जाते हैं। ग्रन्थ में काव्यशास्त्र विषयक अनेक बातों का समावेश है जिनके उदाहरणों में राजा कामिराज के यश का वर्णन किया गया है। इस सम्बन्ध में यह रचना जगन्नाथकृत रसगंगाधर, विद्याधरकृत एकावली तथा विद्यानाथकृत प्रतापरुद्रयशोभूषण से समानता रखती है क्योंकि उनमें भी समस्त उदाहरण उनके कर्ताओं द्वारा स्वयं रचित हैं और उनमें उनके संरक्षकों का यशोगान भी पाया जाता है.। .. शृङ्गारार्णव-चन्द्रिका का प्रस्तुत संस्करण केवल एक मात्र प्राचीन प्रतिपर आधारित है जो डॉ० आ० ने० उपाध्ये को हस्तगत हुई थी और जिसे उन्होंने प्रामाणिक रीति से सम्पादन हेतु डॉ० व्ही० एम० कुलकर्णी के. सुपुर्द की थी। इसकी अन्य किसी प्राचीन प्रति का कहीं से अभी तक पता नहीं चल सका है। डॉ० कुलकर्णी संस्कृत काव्यशास्त्र के बड़े लगनशील अध्येता है और उन्होंने वर्तमान परिस्थितियों में जहां तक सम्भव था वहाँ तक ग्रन्थ को उसके यथार्थ स्वरूप में प्रस्तुत करने में कोई कोरकसर नहीं रखी। उन्होंने ग्रन्थ की विद्वत्तापूर्ण आलोचनात्मक प्रस्तावना भी लिखी है, जिसमें उन्होंने ग्रन्थकर्ता का इतिहास, रचनाकाल, काव्यस्वरूप, ग्रन्थनाम तथा संक्षिप्त विषय-वर्णन एवं उसके स्रोतों आदि अनेक For Private and Personal Use Only
SR No.020752
Book TitleSringar Nav Chndrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvarni, V M Kulkarni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1969
Total Pages267
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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