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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीपाल - चरितम् ॥ ४६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ-उस श्रीपालको माता कहे हे पुत्र तैं बालक है और सरल है सुकुमार तेरा शरीर है देशान्तरोंमें फिरना तो 6 भाषाटीकाकठिन है इसी कारणसे दुःखकारक है ॥ ३५० ॥ सहितम्. तो कुमरो जणणीं पइ, जंपइ मा माइ ! एरिसं भणसु । तावच्चिय विसमत्तं, जाव न धीरा पवज्जंति ॥५१॥ अर्थ — उसके बाद मातासे कहे हे अंब हे माताजी ऐसा वचन मतकहो कार्यमात्रका विषमपना तबतकही है जबतक धैर्यवान पुरुष नही अंगीकार करे ।। ३५१ ॥ | पभणइ पुणोऽवि माया, वच्छय ! अह्मे सहागमिस्सामो । को अह्मं पडिबंधो, तुमं विणा इत्थ ठाणंमि ॥५२ अर्थ - और भी माता कहे हे वत्स हम तुम्हारे साथ आवेंगी यहां तेरे बिना हमारे रहनेका क्या कारण है अपितु कोई कारण नहीं है ॥ ३५२ ॥ कुमरो कहेइ अम्मो ! तुम्हेहिं सहागयाहिं सवत्थ । न भवामि मुक्कलपओ, ता तुम्हे रहह इत्थेव ॥५३॥ अर्थ - कुमर बोला हे माताजी आप साथमें आवो तो मेरे सर्वत्र पग बन्धन होवे सर्वत्र मोकला पग नहीं होवे इस वास्ते यहांही रहो ॥ ३५३ ॥ | मयणा भणेइ सामिय! तुम्हं अणुगामिणी भविस्सामि, । भारंपि हु किंपि अहं, न करिस्सं देहछायुव ॥ ५४॥ For Private and Personal Use Only ॥ ४६ ॥
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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