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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ - तब मदनसुंदरी बोली हे स्वामिन् मैं आपके अनुगामिनी पीछे २ चलूंगी निश्चय कुछभी भार नही करूंगी शरीरकी छाया सदृश चलूंगी ॥ ३५४ ॥ कुमरेणुत्तं उत्तमधम्मपरे, देवि! मज्झ वयणेणं । नियसस्सूसुस्सूसण, - परा तुमं रहसु इत्थेव ॥५५॥ अर्थ - कुमर बोला हे उत्तमधर्मतत्पर हे देवि मेरे वचनसे तैं अपनी सासूकी सेवा प्रधान जिसके ऐसी भई थकी यहांही रह ।। ३५५ ॥ मयणाह पइपवासं, सइओ इच्छंति कहवि नो तहवि । तुम्हं आएसुच्चिय, महप्पमाणं परं नाह ! ॥ ५६ ॥ अर्थ - तब मदनसुंदरी कहे सती सुशीला स्त्रियों कोईप्रकारसे अपने पतिका विदेश गमन नहीं वांछती है तथापि मेरे तो आपकी आज्ञाही प्रमाण है ।। ३५६ ॥ अरिहंताइपयाई, खर्णपि न मणाउ मिल्हिय वाइं । नियजणणिं च सरिज्जसु, कइयावि हु मंपि नियदासीं ॥ अर्थ- आप अर्हतादि नवपद क्षण मात्र भी अपने मनसे दूर करना नहीं और अपनी माताको याद करना कोई वक्त मैं दासी हूं मेरेकोभी याद करना ॥ ३५७ ॥ | जणणी वि तस्स नाऊण, निच्छयं तिलय मंगलं काउं । पभणइ तुह सेयत्थं, नवपयज्झाणं करिस्समहं ३५८ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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