SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपाल- अर्थ-अथवा कोई कन्या रत्न तेरे हृदयमें खटके है तथा अपनी स्वीका कीया हुआ अविनय भया है वह तो मदन- भाषाटीका. चरितम् सुंदरीमें नहीं संभवे है ॥ ३४१॥ कसहितम्. 18 केणावि कारणेणं, चिंतातुरमत्थि तुह मणं नूणं । जेणं तुह मुहकमलं, विच्छायं दीसई वच्छ ॥३४२॥ ॥४५॥ है| अर्थ-निश्चय कोई कारण करके तेरा मन चिंतातुर है जिसकारणसे हे वत्स तेरा मुहकमल उदास दीखता है॥३४२॥ कमरेण भणियमम्मो, एएसिं मझओ न एकंपि । कारणमत्थित्थमिमं अन्नं पुण कारणं सुणसु॥४॥ I अर्थ-कुमर बोला हे माताजी इन कारणोंमें एकभी यहां कारण नहीं है किंतु कारण और है वह तुम सुनो ॥३४॥ 8/नाहं निययगुणेहिं, न तायनामेण नो तुह गुणेहिं । इह विक्खाओ जाओ, अहयं सुसुरस्स नामेणं ॥४४॥ | अर्थ-इस नगरमें मैं अपने गुणोंसे प्रसिद्ध नहीं भयाहूं और पिताके नामसे भी विख्यात नहीं भयाहूं और तुम्हारे गुणोंसे भी प्रसिद्धि नहीं पाई है किंतु मैं यहां सुसरेके नामसे प्रसिद्ध भयाहूं ॥ ३४४ ॥ तं पुण अहमाहमत्तकारणं वज्जियं सुपुरिसेहिं । तत्तुच्चिय मझमणं, मिज्जइ सुसुरवासेणं ॥ ३४५॥ | अर्थ-वह जो सुसरेके नामसे प्रसिद्ध होना सो तो अधमाधमका कारण है जिस कारणसे कहा है उत्तमाः स्वगुणैः ख्याताः मध्यमाश्च पितुगुणैः । अधमाः मातुलैः ख्याताः श्वशुरेणाधमाधमाः॥१॥ इस बचनसे इसीकारणसे सत् पुरुषोंने मना किया है स्वसुरेके घरमें रहनेसे मेरा मन उदास होता है । ३४५॥ HUSUSHISHIANSANIAS For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy