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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ - अहो अहो तैं कहः राजकुमर सदृश लीला करके यह कौन जावे है ऐसा ग्रामीणने पूछनेसे नागरिक बोला अहो यह राजाका जमाई है ॥ ३३७ ॥ तं सोऊण कुमारो, सहसा सरताडिओव विच्छाओ । जाओ वलिऊण समागओय, गेहंमि सविसाओ ३८ अर्थ- वह नागरिकका वचन सुनके कुमर अकस्मात् वाणसे ताडितके जैसा उदासभया और विषाद सहित वहांसेही पलटकर अपने घर आया ।। ३३८ ॥ तं तारिसंच जणणी, दहूण समाकुला भणइ एवं, किं अज्ज वत्थ ! कोवि हु, तुह अंगे वाहए बाही ॥ ३३९ ॥ अर्थ - तब माता कुमरका वैसा उदास मुखदेखके व्याकुल भई इस प्रकारसे कहे हे वत्स आज तेरे शरीरमें क्या | कोई रोग पीडा उत्पन्न करे है ॥ ३३९ ॥ किं वा आखंडलसरिस, तुज्झ केणावि खंडिया आणा । अहवा अघडंतोवि हु, पराभवो केणवि कओ ते ४० अर्थ - अथवा हे आखंडल सदृश हे इन्द्रतुल्य हे पुत्र तेरी आज्ञा क्या किसी पुरुषने खंडन करी अथवा अघटमान भी निश्चय तेरा अनादर किसीने किया जिससे तैं ऐसा देखनेमें आवे है ॥ ३४० ॥ किंवा कन्नारयणं, किंपि हु हियए खडुक्कए तुज्झ । घरणीकओ अविणओ, सो मयणाए न संभवइ ॥ ४१ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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