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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | नेका विधि यह है ओं ह्रीं दर्शनाय स्वाहा अग्नि कोणमें १ ओम् ही ज्ञानाय स्वाहा नैऋतमें २ ओ ह्रीं चारित्राय स्वाहा वायव्यमें ३ ओम् ह्रीं तपसे स्वाहा ईशानमें ४ इस क्रमसे लिखे यह अष्टदल पहला वलय भया ॥ ९७ ॥ वीयवलयंमि अडदिसि, दलेसु साणाहए सरह वग्गे । अंतरदलेसु अट्ठसु, झायह परमिट्ठिपढमपए ९८ अर्थ - प्रथम वलय के बाहर सोलह पाखड़ीका कमल मंडलाकार लिखे वहां दूसरे वलयमें आठ एकांतरित दिग् दलमें अनाहत बीजसहित आठ वर्ग अ १ क २ च ३८४ त ५ प ६ ७ श ८ यह आठ वर्ग क्रमसे लिखके स्मरण करो पहले वर्ग में सोलह वर्ण है कवर्गादिक पांचोंमें प्रत्येक पांच २ वर्ण है अन्तिम दो वर्गमें चार २ वर्ण है बाद आठ वर्गोंके अंतर पत्रों में परमेष्ठी पद ओम् नमो अरिहंताणं ध्यावो यह दूसरा वलय हुआ ॥ ९८ ॥ तइयवल एवि अडदिसि, दिप्पंत अणाहएहिं अंतरिए । पायाहिणेण तिहि, पंतियाहिं झाएह लद्धिपए १९९ अर्थ- तीसरे वलयमेंभी आठ दिशामें आठ अनाहत लिखे दोनोंके अंतर में दो २ लब्धि पद ऐसे आठ अंतरोंमें | सोलह लब्धि पद पहली पंक्ति में एवं सोलहही दूसरी पंक्ति में और सोलहही तीसरी पंक्ति में इस प्रकारसे दीप्यमान आठ अनाहतोंके अंतर में प्रदक्षिणा करके तीन पंक्ति करके ४८ लब्धि पद तुम ध्यावो ॥ १९९ ॥ ते पणववीयअरिहं, नमोजिणाणंति एवमाईया । अडयालीसंणेया, सम्मं सुगुरूवएसेणं ॥ २०० ॥ अर्थ - लब्धिपद ओंकार ह्रींकार ऽहै ऐसा सिद्ध बीज पूर्वक नमोजिणाणं ऐसा पद ओम् हीं डर्ह नमोजिणाणं For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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