SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीपाल - चरितम् ॥ २६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ - अब ग्रंथकार ग्यारह ११ गाथासे सिद्धचक्रका उद्धार विधिः कहते हैं गयण इत्यादि यहां गगनादि संज्ञा मंत्र शास्त्रोंसे जानना वहां गगनशब्दसे हू ऐसा अक्षर कहा जावे यन्त्रके सर्व मध्यभागमें हू ऐसा अक्षर स्मरण करो यहां स्मरणहीका अधिकार है स्मरणकी शक्ति न होवे तो पदस्थ ध्यान साधनेके लिए मनोज्ञ द्रव्योंसे पट्टादिकमें लिखनाभी पूर्वाचार्योंका आमनाय है ऐसा आगे भी विचारना वहां पहले अकार अक्षरकी कलिका व्याकरण संज्ञा मई वक्र s ऐसा अक्षररूप उस करके सहित हकार लिखना ऽह ऐसा भया यह गगनबीज कहा जावे कैसा गगनबीज ऊपर नीचे रेफसहित 5 र्हऐसा भया और कैसा नाद अर्ध चंद्राकारके ऊपर बिंदु सहित अर्ह ऐसा भया और ओंकार ह्रींकार और अनाहत कुंडलाकार सहित आम्नाय यह है अहै यह बीज ओंकारके उदरमें स्थापे यह बीज ह्रींकारके उदरमें स्थापना बाद ह्रींकारका ईकार स्वरकी रेखा घुमाके दो कुंडलाकार अनाहत करके तीनों बीजको बीटना और कैसा बीज चौतर्फ स्वर जिसके अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ऌ लु ए ऐ ओ औ अं अः ये सोलह अंतमें स्वर हैं जिसके ऐसा मूल पीठमें ध्याओ ॥ ९६ ॥ | झायह अडदलवलए, सपणवमायाइए सुवाहंते । सिद्धाइए दिसासु, विदिसासु दंसणाईए ॥ ९७ ॥ अर्थ - अथ पीठलिखके उसके पासमें गोलमंडल लिखे उसके ऊपर आठ पांखडीका कमल लिखे उन्होंमें चार दिशाके पत्र में ओम् ह्रीं सिद्धेभ्यः स्वाहा पूर्व दिशिमें १ ओम् ह्रीं आचार्येभ्यः स्वाहा दक्षिणमें २ ओम् हीं उपाध्यायेभ्यः स्वाहा पश्चिममें ३ ओम् ह्रीं सर्व साधुभ्यः स्वाहा उत्तरमें ४ इसीतरह विदिशा में दर्शनादि चार पद ध्याओ लिख For Private and Personal Use Only भाषाटीकासहितम्. ॥ २६ ॥
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy