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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपाल-15 इत्यादि अड़तालीस पद सम्यक् सुगुरूके उपदेशसे जानना इन्होंका नाम और माहात्म्य लब्धिकल्पशास्त्रसे जानना 8 भाषाटीकाचरितम् इहां तो आराधन विधिः विना लिखनेमें दोष है ॥२०॥ सहितम्. तं तिगुणेणं माया,-वीएणं सुद्धसेयवपणेणं । परिवेढिऊण परहीइ, तस्स गुरुपायए नमह ॥ २०१॥ ___ अर्थ-वह पीठादि लब्धिपद पर्यंत त्रिगुण श्वेतवर्ण हींकारसे चौतर्फ वीटके परिधिमें आव गुरु पादुकाको नमस्कार करो यहां यह भाव है सर्व यन्त्रके ऊपर हींकार लिखके उसके ईकारसे तीनवलय देके चौथा आधावलयके अंतमें कौं ऐसा अक्षर लिखे उसकी परिधिमें आठ गुरु पादुका चरणन्यास लिखे ॥ २०१॥ अरिहं सिद्धगणीणं, गुरुपरमादिट्ठणंतसुगुरूणं । दुरणंताण गुरूण य, सपणववीयाओ ताओ य ॥२०॥ ___ अर्थ-अब आठ गुरुपादुका कहते हैं अर्हत पादुका १ सिद्ध पादुका २ आचार्य पादुका ३ उपाध्याय पादुका ४ परमगुरुपादुका ५ अदृष्टगुरुपादुका ६ अनंतगुरुपादुका ७ अनंतानंतगुरुपादुका ८ यह आठ गुरु पादुका ओम् ही युक्त लिखना ओम् ही ऽहत् पादुकाभ्यो नमः ऐसे सब लिखना ॥ २०२॥ रेहादुगकयकलसा,गारामियमंडलंव तं सरह, चउदिसि विदिशि कमेणं, जयाइभाइकयसेवं ॥२०॥ ॥२७॥ _ अर्थ-दो रेखा यन्त्रके ऊपर वाम दक्षिण निकली परस्पर लगा हुआ अंतभाग जिन्होंका ऐसी दो रेखा करके है। For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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