SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CAREKASIRevie | अर्थ-तिस कारणसे इन नवपदोंको जिनशासनका सरवस्व याने सर्व सार जानके अहो भव्यो शुद्धभावसे । आराधन करो ॥ १३१५ ॥ एयाइं च पयाई, आराहताण भवसत्ताणं । हुंतु सयाविहु मंगल, कल्लाणसमिद्धिविद्धीओ ॥१३१६॥ ___ अर्थ यह नवपदोंका आराधन करता भव्यजीवों के निरंतर निश्चय मंगल कल्याणसमृद्धियोंकी वृद्धि होवे ॥ मंगल उपद्रव शांति कल्याण सम्पदाका उत्कर्षरूप समृद्धि वृद्धि परिवारादि वृद्धिरूप होवे ॥ १३१६॥ एवं तिकालगोयर, नाणे सिरिगोयमंमि गणनाहे । कहिऊण ठिए सेणियराओ, जानमवि मुणिणाहं १७| अर्थ-इस प्रकारसे त्रिकाल बिषयी ज्ञान जिन्होंका ऐसे श्री गौतमस्वामी गणधर कहके रहे तब श्रेणिक राजा गौतमस्वामीको नमस्कार करके जितने ॥ १३१७ ॥ उठेइ तओ हरिसिय, चित्तोता तत्थ कोवि नरनाहं। विन्नवइ देव वद्धाविजसि, वीरागमेण तुमं ॥१३१८॥ अर्थ-जितने वहांसे उठे उतने हर्षित चित्त जिसका ऐसा कोई पुरुष वहां आके राजासे कहे हे देव हे महाराज |भगवान् श्रीमहावीरस्वामीका यहां आगमन होनेसे मैं आपको बधाई देता हूं ॥१३१८ ॥ तं सोऊणं सेणिय, नरनाहो पमुइओ सचित्तंमि । रोमंचकवचियतणू, वद्धावणियं च से देई ॥१३१९॥ श्रीपा.च.२८ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy