SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपालचरितम् ॥१६३॥ भाषाटीकासहितम्. RECESSARAM अर्थ-उसपुरुषका बचन सुनके श्रेणिक राजा अपने मनमें हर्षित भया और रोमांचित भया शरीरजिसका ऐसा होके उस पुरुषको बधाइका द्रव्य देवे ॥१३१९॥ इत्थंतरंमि तिहुयण,-भाणू सिरिवद्धमाणजिणनाहो। अइसयसिरीसणाहो, समागओ तत्थ उजाणे २० ___ अर्थ-इस अवसरमें त्रिभुवनभानु तीन लोकके सूर्य श्रीवर्धमानस्वामी प्रातिहार्यादिअतिशय लक्ष्मी सहित उस उद्यानमें आए ॥ १३२०॥ देवेहि समवसरणं, रइयं अच्चंतसुंदरं सारं । सिरिवद्धमाणसामी, उवविट्ठो तत्थ तिजयपह ॥१३२१॥ अर्थ-देवोने अत्यन्त सुंदर प्रधान समवसरण रचा उस समवसरणमें तीनजगत् के प्रभु श्रीवर्धमान स्वामी बैठे १३२१ गोयमपमुहेसु गणीसरेसु, सक्काइएसु देवेसु । सेणियपमुहनिवेसुय, तहिं निविढेसु सव्वेसु ॥ १३२२ ॥ | अर्थ-श्रीगौतमस्वामी प्रमुख गणधर सौधर्मादि इन्द्र और श्रेणिक प्रमुख राजा यह सब उस समवसरणमें बैठनेसे २२ सेणियमुदिस्स पहू, पभणेइ नरनाह ? तुझ चित्तंमि । नवपयमाहप्पमिणं, अइगुरुयं कुणइ अच्छरियं २३ ___ अर्थ-श्रेणिक राजाका नाम उच्चारण करके प्रभु श्रीवर्धमानस्वामी बोले हे नरनाथ यह नवपदोंका माहात्म्य तुम्हारे चित्तमें बहुत आश्चर्य करे है ॥ १३२३ ॥ ॥१६३॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy