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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SAR श्रीपाल- अर्थ-और तप क्रिया पूरण होनेसे राजाने उज्जवणा मांडा तव आठ श्रीमतीरानीकी सखियोंने उजवणा सहित भाषाटीकाचरितम् तपकी अनुमोदना प्रशंसा करी ॥ ११४३ ॥ सहितम्. ॥१४१॥ सत्तहिं सएहिं तेहिं, सेवयपुरिसेहिं तस्स नरवइणो । दट्ठणं धम्मकरणं, पसंसियं किंपि खणमित्तं ११४४ ___ अर्थ-सातसै ७०० सेवक पुरुषोंने राजाको धर्मकार्य कर्ताहुआ देखके क्षणमात्र कुछ प्रशंसा करी आजकल तो अपना स्वामी सम्यक कार्य करे है इत्यादि प्रशंसा करते भए ॥ ११४४ ॥ ते अन्नदिणे राया,-एसेणं सीहनामनरवइणो । हणिऊण गाममिक, जा वलिया गोधणं गहिउं ११४५ VI अर्थ-अन्यदिनमें वह ७०० पुरुष राजाकी आज्ञासे सिंहनामके राजाका एक गाम लूटके गायां वगैरह लेके जित ने पीछे चले ॥ ११४५ ॥ हता पुट्टि पत्तो सीहो, बहुबलकलिओ पयंडभुयदंडो। तेण कुविएण सबे, धाडय पुरिसा हया तत्थ ११४६|3| ___ अर्थ-उतने बहुत सैन्ययुक्त और प्रचंड भुजदंड जिसके ऐसा सिंहराजा पीछे आया क्रोधातुर भया ऐसा सिंह राजाने उस प्रदेशमें सर्व धाड़के पुरषोंको मारे ॥ ११४६ ॥ ॥१४१॥ तेवि मरिऊण-खत्तिय, पुत्ता होऊण तरुणभावेवि । साहूवसग्गपाव,-प्पसायओ कुट्ठिणो जाया ॥११४७॥ RECANCECREGARACCU For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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