SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ-तथापि किया है पाप जिन्होंने ऐसे प्राणियों के जो भावका उल्लास शुभ परिणामकी वृद्धि होवे तो सब पापका क्षणेकमें नाश होवे ॥११३९ ॥ भावस्सुल्लासकए, अरिहाइपसिद्धसिद्धचक्कस्स । आराहणं मुणीहिं, उवइटुं भवजीवाणं ॥ ११४०॥ ___ अर्थ-भावके उल्लास करने के लिए अहंदादि पदों करके प्रसिद्ध सिद्धचक्रका आराधन भव्य जीवोंके वास्ते मुनिटूयोंने कहा है ॥ ११४०॥ है|ता जइ करेइ सम्मं, एयस्साराहणां नरवरोवि । ता छुट्टइ सयलाणं, पावाणं नत्थि संदेहो ॥११४१॥ * अर्थ-तिस कारणसे राजाभी जो अच्छीतरहसे सिद्धचक्रका आराधन करे तो सर्व पापोंसे छूटे इसमें सन्देह नहीं है ॥ ११४१॥ तो सिक्खिऊण पूया, तवोविहाणाइयं विहिं राया।भत्तीइ सिद्धचकं, आराहइ सिरिमइसमेओ ११४२ __अर्थ-तदनंतर राजा पूजा और तपका जो करना इत्यादि विधि सीखके श्रीमतीरानी सहित भक्तिसे सिद्धचक्रका आराधन करे ॥ ११४२॥ पुन्ने अतवोकम्मे, रन्ना मंडाविए य उज्जमणे। सिरिमइसहीहिं अट्ठहिं, विहिया अणुमोयणा तस्स ११४३ CALCACANCICISROCK MCALCOACRECORESCORECASCHECE For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy