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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ – वह सातसै ७०० राजाके सेवक मरके क्षत्रियोंके पुत्र होके यौवन अवस्था में भी साधुवोंको किया उपसर्ग उस पापके प्रसादसे कोढ़ी भए । ११४७ ॥ जो सिरिकंतो राया, पुन्नपभावेण सो तुमं जाओ । सिरिमइजीवो मयणा, -सुंदरि एसा मुणियतत्ता ११४८ अर्थ- जो सिरिकान्त राजा था वह पुण्यके प्रभावसे तैं भया श्रीमतीरानीका जीव यह मदनसुंदरी भई कैसी है यह मदनसुंदरी जाना है तत्व जिसने ऐसी ॥। ११४८ ॥ जं पुर्व्विपि हु धम्मुज्जमपरा, तुहहियिकतलिच्छा । आसि इमा तं जाया, एसा तुह मूल पट्टमि ॥११४९ ॥ अर्थ — निश्चय जिस कारण से पूर्वभवमें भी धर्ममें उद्यम करने में तत्परथी और तेरे हितकरनेकी इच्छा जिसकी ऐसीथी तिस कारणसे यह तेरी मूल पटरानी हुई ॥ ११४९ ॥ तुमए जहा मुणीणं, विहिया आसायणा तहाचेव । कुट्टित्तं जलमजण, - मत्रि डुंबत्तं च संपत्तं ॥ ११५० ॥ अर्थ - तैने जिस २ प्रकारसे मुनियोंकी आशातना विराधना करी उस २ प्रकारसे तैंने इस भवमें कोढ़ीपना समुद्र में गिरना और डूमपना पाया ॥ ११५० ॥ जं च तए तीए सिरिमईइ, वयणेण सिद्धचक्कस्स । आराहणा कया तं, मयणावयणा सुहं पत्तो ॥ ११५१ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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