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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपालचरितम् ॥११८॥ OCES MAGAMAALCARICANCHAR तासिं च नवन्हंपिह, वत्थालंकारसारपरिवारं। देई निवो साणंदो, इकिकं नाडयं चेव ॥ ९४८॥ भाषाटीकाअर्थ-तब श्रीपालराजा आनंद सहित नवरानियोंको प्रधान बस्त्र अलंकार और सार परिवार देवे और एक छ| सहितम्. २ नाटक देवे ॥ ९४८॥ पुट्ठा जिट्ठा मयणा, तुह जणयंपि ह कहं अणावेमि। तीए वुत्तं सो एउ, कंठपीठविय कुहाडो॥९४९॥ अर्थ-तब राजा बड़ी रानी मदन सुंदरीसे पूछा तुम्हारे पिताको किस प्रकारसे बुलाऊं तब मदनसुंदरी बोली हे| ४/स्वामिन् वह मेरे पिता कंठपर कुहाड़ा जिसके ऐसे होके आओ ॥ ९४९॥ ट्रातंच तहा यमुहेण, तस्स रन्नो कहावियं जाव । ताव कुविओ य मालवराया मंतीहि भणिओ य॥९५०॥ | अर्थ-वह वचन उसी प्रकारसे दूतके मुखसे प्रजापाल राजाको जितने कवाया उतने मालवराजा क्रोधातुर हुआ तव मंत्रियोंने कहा ॥ ९५०॥ सामिय असमाणेणं, समं विरोहो न किज्जए कहवि। ता तुरियं चिय किजओ, वयणं दूयस्स भणियमिणं॥ ___ अर्थ-हे स्वामिन् अपनेसे अधिक के साथ बिरोध नहीं करना कोई प्रकारसे इसलिए शीघ्र यह दूतका कहा हुआ ॥११८॥ है वचन करो ॥ ९५१॥ S ORIES For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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