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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbalirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SAMAKAMSAKALAM का अर्थ-तदनंतर दरवजा उघाड़ा श्रीपालराजा माताके चरणोंमें नमस्कार करे और विनय करनेमें तत्पर प्रिया मदन हा सुंदरीके साथ परमप्रेमसे भाषणकरे ॥ ९४३ ॥ है आरोविऊण खंधे, जणणिं दइयं च लेवि हत्थेण । हारप्पभावउच्चिय, पत्तो नियगुट्टरावासं ॥९४४॥ | अर्थ तदनंतर श्रीपालराजा माताको कांधेपर बैठाके स्त्रीको हाथ में लेके हारके प्रभावसे अपने तंबूमें आए ॥९४४॥ तत्थय जणणिं पणमित्तु, नरवरो भद्दासणे सुहनिसन्नं। पभणेइ माय तुह,-पयपसायजणियं फलं एयं९४५ अर्थ-वहां तंबूमें राजा श्रीपाल भद्रासनपर बैठी हुई माताको नमस्कार करके कहे हे माताजी तुम्हारे चरणोंके प्रसादसे उत्पन्न भया यह फल है ॥ ९४५ ॥ पणमंति तओ ताओ, अटू ण्डहाओ ससासुयाइ पए। अवि मयणसुंदरीए, जिट्राए निययभइणीए॥ | अर्थ-तदनंतर आठ पुत्रकी याने श्रीपालराजाकी रानियों सासुके चरणोंमें नमस्कार करें तथा बड़ी बहिन मदन| सुंदरीके चरणों में नमस्कार करें ॥ ९४६ ॥ अभिणंदियाओ ताओ, ताहिं आणंदपूरियमणाहिं। सबोवि हु वुत्तंतो मयणमंजूसाइ कहिओ य॥९४७॥ __ अर्थ-उन सासु और मदनसुंदरीने आशीर्वाद देके आनंदसहित करी कैसी है श्रीपालकी माता कमलप्रभा और मदनसुंदरी आनंदसे पूरित है मन जिन्होंका ऐसी और मदनमंजूसा विद्याधर राजाकी पुत्रीने सर्ववृत्तान्त कहा ॥९४७॥ दू SARASHARASRANAGAR For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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