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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobelirtth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandi श्रीपालचरितम् ॥११॥ PARAAAAAACHICAS तत्थरिथ महीपालो, कालो इव वेरियाण दमियारी। पइवरिसंसो गच्छड, उज्जैणि निवस्स सेवाए॥७९॥ भाषाटीका___ अर्थ-उस शंखपुरी नामा नगरीमें शत्रुओंके कालके जैसा दमितारी नामका राजा है वह राजा प्रतिवर्ष उज्जैनी सहितम्. नगरीके राजाकी सेवाके लिये आता है ॥ ७९ ॥ अन्नदिणे तप्पुत्तो, अरिदमणो नाम तारतारुन्नो । संपत्तो पियठाणे, उज्जैणिं रायसेवाए ॥ ८॥ अर्थ-अन्य दिनमें दमितारी राजाका पुत्र अरिदमन कुमर राजाकी सेवाके वास्ते उज्जैनी आया कैसा है अरिदमन कुमर उद्भट तारुण्य यौवन है जिसका ॥ ८ ॥ तं च निवपणमणत्थं, समागयं तत्थ दिवरूवधरं। सुरसुंदरी निरिक्खइ, तिक्ख कडक्खेहिं ताडंति ॥८॥ __ अर्थ-उसवक्त राजाको नमस्कार करनेके लिए सभामें आया दिव्यरूपधारनेवाला अद्भुत सौंदर्य है जिसका ऐसा | अरिदमन कुमरको सुरसुंदरी राजकन्या तीखे कटाक्ष नेत्र प्रान्तभागोंसे ताड़ती देखे ॥ ८१॥ तत्थेव थिरनिवेसियदिट्ठी, दिट्ठा निवेण सा वाला।भणियाय कहसु वच्छे, तुज्झवरो केरिसो होउ ॥८॥ है - अर्थ उस कुमरमें निश्चल स्थापित करी है दृष्टि जिसने ऐसी सुरसुंदरी कन्याको राजाने देखी और कहा हे वत्से | कह तेरे कैसा भर्तार होवे ॥ ८२॥ Ix॥११॥ तोतीए हिट्ठाए, धिट्ठाए मुक्कलोयलज्जाए । भणियं तायपसाया, जइ लब्भइ मग्गियं कहवि ॥८॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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