SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobelirtth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir अर्थ-बाद राजाकी आज्ञासे मदनसुंदरीभी उस समस्याको पूर्ण करे कैसी है मदनसुंदरी जिनवचनोंमें रक्त और द्रशान्त उपसमयुक्त दान्त नाम इन्द्रिय दमयुक्त और कैसी समस्या अपने स्वभाव सरीखी ॥ ७५ ॥ यथा विणय विवेय पसण्णमणुं, सीलसुनिम्मल देह। परमप्पह मेलावडो, पुण्णहिंलब्भइ एह ॥७६ ॥ | अर्थ-विनय पूज्यादिकमें वन्दन नमस्कारादिरूप विवेक वस्तुओंका भेद जानना प्रसन्नमनः मनका निर्मलपना | तथा ब्रह्मचर्यसे अत्यन्त उज्वलशरीर पाना और परमपथ मोक्ष मार्गके साथ सम्बन्ध होना इतनी वस्तु पुण्यसे मिले हैं ॥ ७६॥ तो तीए उवज्झाओ,माया वि य हरिसिया न उण सेसा, जेण तत्तोवएसो, नकुणइ हरिसं कुदिट्रीणं ७७ I अर्थ-समस्या पूर्ण किये अनन्तर मदनसुंदरीका पाठक हर्षित भया और माताभी हर्षित भई परन्तु और राजा- |दिक लोगोंने हर्ष नहीं पाया इस कारणसे तत्वका उपदेश मिथ्यात्वी लोगोंको हर्ष नहीं करे है उसका बचन तत्वउपहै| देशरूप है राजादिक तो बाह्य दृष्टि है इस लिए सुनके हर्ष नहीं पाया कहा है गुणिनि गुणज्ञो रमते ॥ ७७॥ Pइओय कुरुजंगलंमिदेसे, संखपुरी नाम पुरवरी अत्थि। जापच्छा विक्खाया, जाया अहिछत्ता नामेणं ७८ 51 अर्थ-इधरसे इसके बाद जो भया सो कहते हैं कुरुजंगल नाम देशमें शंखपुरी नामकी प्रधान नगरी है वह नगरी कितने कालके अनन्तर अहिछत्रा नामसे प्रसिद्ध भई ॥ ७८ ॥ SAMSKRRECORDC ANDALASAREKASSACREAK For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy