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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ-जहाजोंकी लक्ष्मी करके सहित नहीं विद्यमान संख्या जिसकी ऐसा असंख्य जो चतुरंग हाथी, घोड़ा रथ प्यादल रूप सैन्य करके सहित श्रीपालराजा अपनी माताके चरणोंमें नमस्कार करनेके लिए चले ॥ ९.०॥ सो विह आगच्छंतो, ठाणे ठाणे नरिंदविंदहिं । बहुविहभिट्टणएहिं, भिहिजइ लद्धमाणेहिं॥ ९०१॥ PI अर्थ-श्रीपालराजा मार्गमें चलता हुआ ठिकाने २ नृपसमूह करके अनेक प्रकारके भेटनों से भेटा जावे कैसे राज समूह पाया है सन्मान जिन्होंने ॥ ९०१॥ सोपारयंमि नयरे, संपत्तो तत्थ परिसरमहीए। आवासिओ ससिन्नो, सो सिरिपालो महीपालो ॥९०२॥ | अर्थ-ऐसे प्रयाण करते हुए क्रमसे सोपारक नाम नगर प्राप्त भया वहां नगरके पासकी भूमीमें श्रीपालराजा सेनासहित निवास किया ॥९०२॥ पुच्छइ पहाणपुरिसे, जं सोपारयनिवो न दंसेइ । भत्तिं वा सत्तिं वा, तं नाऊणं कहह तुरियं ॥९०३॥ _ अर्थ-तदनंतर श्रीपालराजा प्रधान पुरुषोंसे पूछे सो पारक नगरका राजा भक्ति प्रसन्नता अथवा सक्तिसामर्थ्य कैसे नहीं दिखावे है वह जानके शीघ्र कहो ॥ ९०३ ॥ नाऊण तेहिं कहियं, नरनाहो नाम इत्थ अस्थि महसेणो।ताराय तस्स देवी, तक्कुच्छिसमुभवा एगा९०४ AUTHOR:SSUESIACAS For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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