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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीपाल - चरितम् ॥ ११३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ — उन प्रधान पुरुषोंने वह स्वरूप जानके राजाके आगे कहा हे महाराज इस नगरमें महासेन नामका राजा है 5 भाषाटीकाउस राजाके तारा नामकी रानी है और उन्होंके तिलक सुंदरी नामकी पुत्री है ॥ ९०४ ॥ सहितम्. तिजयसिरितिलयभूया, धूया सिरितिलय सुंदरीनामा । अज्जेव कहवि दुट्टेण, दीहपिट्ठेण सा दट्ठा ॥ ९०५ ॥ अर्थ - कैसी है तिलकसुंदरी तीन लोककी लक्ष्मीके ललाटमें तिलक सदृश ऐसी तिलकसुंदरी कन्याको आजही कोई प्रकार से दुष्ट सर्पने इसी है ।। ९०५ ॥ विहिया वहुप्पयारा, उवयारामंतओसहि मणीहिं । तहवि न तीए सामिय?, कोवि हु जाओ गुणवि सेसो ९०६ अर्थ – मंत्र औषधी मणियों करके बहुत उपचार किया तथापि हे स्वामिन् उस कन्याके निश्चय कोई गुण विशेष नहीं भया ॥ ९०६ ॥ तेण महादुक्खेणं पीडियहियओ नरेसरो सोउ । नो आगओत्थि इत्थं, अपसाओ नेव कायवो ९०७ अर्थ – उस महादुःखसें पीडित हृदय जिसका ऐसा वह राजा नहीं आया है यहां अप्रसन्नता नहीं करनी ॥ ९०७ ॥ राया भणेइ सा कत्थ, अत्थि दंसेह मज्झ झत्ति तयं । जेणं किज्जइ कोवि हु, उवयारो तीइ कन्नाए ९०८ अर्थ-तब राजा श्रीपाल कहे कन्या कहां है शीघ्र मेरेको दिखाओ जिससे उस कन्याका उपाय जहर दूर करनेका किया जाय ॥ ९०८ ॥ For Private and Personal Use Only ॥ ११३ ॥
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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