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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीपाल - चरितम् ॥ ११२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ - और मातुल (मामा) राजा वसुपाल कुमरकी उत्तमलक्ष्मी देखके आनन्द प्राप्त भया और मदनसेनादि कुमरकी तीन स्त्रीयों चार सुंदरी सहित अपने भर्तारको देखके आनन्द सहित भई ॥ ८९६ ॥ ततो माउलयनिवो, अणेगनरनाहसंजुओ कुमरं । सिरिसिरिपालं थप्पड़, रज्जे अभिसेयविहिपुवं ॥ ८९७॥ अर्थ - तदनंतर मामा वसुपालराजा अनेक राजाओं करके सहित श्री श्रीपाल कुमरको अभिषेकविधि पूर्वक राज्यमें स्थापे । ८९७ ॥ सीहासणे निविट्ठो, वरहार किरीडकुंडलाहरणो । वरचमरछत्तपमुहेहिं, राय - चिन्हेहिं कयसोहो ॥ ८९८ ॥ अर्थ - राज्याभिषेक के अनन्तर जैसा राजा भया सो कहेते हैं सिंहासन पर बैठा भया प्रधान हार मुकट कुंडल वगैरहः पहरनेको जिसके और प्रधान चामर छत्र प्रमुख राजचिन्हों करके करी शोभा जीसकी ऐसा ॥ ८९८ ॥ | सिरिसिरिपालो राया, नरवरसामंतमंतिपमुहेहिं । पणमिज्जइ बहु हयगय - मणिमुत्तियपाहुडकरेहिं ८९९ अर्थ - श्रीपालराजाको राजा 'सामंत' मंत्री प्रमुख आके नमस्कार करें कैसे राजा वगैरह घोड़ा हाथी मणि वैडूर्यादि रत्न मुक्ताफल वगैरह भेटना है हाथमें जिन्होके ऐसे ॥ ८९९ ॥ पवहणसिरिसमेओ, असंखचउरंग सिन्नपरिकरिओ । चल्लर सिरिपालनिवो, नियजणणीपायनमणत्थं ॥ ९०० ॥ For Private and Personal Use Only भाषाटीकासहितम्. ॥ ११२ ॥
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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