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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ - राजा लोक बैठे हैं और सबलोक जहां मिले हैं जिस मंडपमें वहां कुमर श्रीपालने कुमरीके सामने हारके प्रभाव से राधावेध किया ।। ८९१ ॥ वरिओ तीए जइसुंदरीवि, कुमरो पमोयपुन्नाए । नरनाहोवि हु महया, - महेण कारेइ वीवाहं ॥ ८९२ ॥ अर्थ-आनन्दसे पूर्णभई ऐसी जयसुंदरी कन्याने कुमरको वरा राजाभी बहुत उत्सवसे विवाह कराया ॥ ८९२ ॥ नरवइदिन्नावासे, सुक्खनिवासे रहेइ जा कुमरो। ता माउलनिवपुरिसा, तस्साणयणत्थमणुपत्ता ॥ ८९३ ॥ अर्थ- सुखकारी निवास जिसमें ऐसा राजाके दिए हुए प्रासादमें जितने कुमर रहे उतने मामा राजा वसुपालका पुरुष सेवक कुमरको बुलानेके वास्ते आया ॥ ८९३ ॥ | कुमरो नियरमणीणं, आणयणत्थं च पेसए पुरीसे । ताओवि सुंदरीओ, सबन्धुसहियाउ पत्ताओ ॥ ८९४ ॥ अर्थ – कुमर अपनी स्त्रियोंको बुलानेके वास्ते पुरुषोंको भेजे वह स्त्रियोंभी अपने २ भाईयोके साथ वहां आई ८९४ | मिलियं च तत्थ सिन्नं, हयगयरहसुहडसंकुलं गरुयं । तेण समेओ कुमरो, पत्तो ठाणाभिहाणपुरं ॥ ८९५॥ अर्थ — और वहां बहुत सेना इकट्ठी भई घोड़ा हाथी रथ प्यादलोंसे व्याप्त उस सेनासहित कुमर थाणा नगर आया ।। ८९५ ॥ आनंदिओय माउल, -राया तस्सुत्तमं सिरिदहुं । सुंदरि चउक्कसहियं, दट्टूण पहुं च मयणाओ ॥ ८९६ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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