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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपालचरितम् ॥१११॥ सहितम् Hottestertentuntunun अर्थ-वह राधावेधकी सामग्री उसी प्रकारसे करवाके राजानेभी और राजाओंको बुलाया है और बहुत राजा आए भाषाटीकाहै हैं परन्तु एकनेभी राधावेध नहीं किया है ॥ ८८७ ॥ सो विहु जइ होइ अणेण, चेव कुमरेण गुरुपभावेण।नो अन्नेणं केणवि, होही सो निच्छओ एसो॥८८८॥ ___ अर्थ-निश्चय जो वह राधावेधभी होवे तो इसी कुमरसे होवे बड़ा है प्रभाव जिसका ऐसा यह कुमर है और कोई पुरुससे नहीं होगा ऐसा निश्चय है ॥ ८८८॥ एवं कहिऊण नियट्टियस्स, भट्टस्य कुंडलं दाउं। कुमरो वि सपरिवारो, निवदत्तावासमणुपत्तो॥ ८८९ ॥ ___ अर्थ-इस प्रकारसे कहके निवृत्त हुआ भट्टको कुंडल देके कुमरभी ख्यादि परिवार सहित राजाका दिया हुआ आवासमें प्राप्त भया ॥ ८८९॥ तत्थ ढिओ तं रयणि, रमणीगणरमणरंगरसवसओ। पञ्चूसे पुण पत्तो, कुल्लागपुरे तहच्चेव ॥ ८९० ॥8 __अर्थ-स्त्रियोंका जो समूह उसके साथजो क्रीड़ा करना उसमें जो राग वह ही रसकास्वाद उसके वश सबरात्रि वहां रहा प्रभातमें उसी प्रकारसे हारके प्रभावसे कुल्लागपुर पहुंचा ॥ ८९० ॥ ॥११॥ उवविडेय नरिंदे, मिलिए लोए कुमरिदिट्ठीए । कुमरेण कओ राहा,-वेहो हारप्पभावेणं ॥ ८९१ ॥ POSLASHAŁASSASALARISA For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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