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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ १०१॥ समुभव, पुत्ता-चत्तारि संति सोंडीरामक प्रसिद्ध कंचनमाला नामकी पटरानी है। श्रीपाल- अर्थ-उस कांचनपुर नगरमें श्रीवज्रसेन नामके राजा हैं उन्होंके प्रसिद्ध कंचनमाला नामकी पटरानी है ॥ ८०३॥ भाषाटीकाचरितम्तीए कुक्खिसमुब्भव, पुत्ता-चत्तारि संति सोंडीरा।जसधवल जसोहर, वयरसिंह गंधव नामाणो ८०४ सहितम्. ॥१०१॥8| अर्थ-कांचनमाला रानीकी कुक्षिसे उत्पत्ति जिन्होंकी ऐसे चार पुत्र हैं कैसे हैं ? पुत्रपराक्रमवंत हैं यशोधवल १ यशोधर २ वज्रसिंह ३ गंधर्व ४ यह नामके हैं ॥ ८०४॥ ताण उवरिं च एगा,-पुत्ती तियलुक्कसुंदरी अस्थि । तियलोएवि न अन्ना, जीए पडिछंदए कन्ना ५/१ ___ अर्थ-उन पुत्रोंके ऊपर एक त्रैलोक्यसुंदरी नामकी पुत्री है जिस कन्या सरीखी तीन लोकमें कन्या नहीं है ॥८०५॥ तीए अणुरूववरं, अलहंतेणं च तेण नरवइणा । पारद्धो अस्थि तहिं, सयंवरामंडवो देव ॥ ८०६ ॥ | है। अर्थ-उस कन्याफे योग्य वर नहीं पाता हुआ राजाने हे देव उस नगरमें स्वयंवरा मंडप प्रारंभ किया है ॥ ८०६॥ तत्थथि सुविच्छिन्नो उत्तुंगो मूलमंडवो रम्मो। मणिकंचणथंभट्टिय, पुत्तलिया-खोहियजणोहो ८०७ PI अर्थ-उस स्वयंवरा मंडपमें अतिशय विस्तीर्ण ऊंचा रमणीक मूलमंडप है और कैसा है रत्न सोनेमई स्तंभोमें पुत-12 | लियोंने क्षोभित किया है लोकोंका समूह जिसमें ऐसा ॥ ८०७ ॥ ॥१०१॥ तत्तो चउपासेसुं, रइया कोऊहलेहिं परिकलिया। मंचाइमंचसेणी, सग्गविमाणावलि सरिछा ८०८६। For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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