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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 240SSSSSSS अर्थ-उस मंडपसे चारों तरफ रची भई कौतुक सहित मंचातिमंच श्रेणी है अर्थात् सिंहासनोंकिश्रेणी रची भई। हा है जैसे देव लोकमें विमानोंकी श्रेणी होवे वैसी ॥ ८०८॥ जे संति निमंतियनरवराण, पडिवत्तिगउरवनिमित्तं । तत्थ कणतिणसमूहा, तेगरुया गिरिवरेहिंतो ८०९ अर्थ-उस प्रदेशमें बुलाए भए राजाओंकी भक्तिके निमित्त अन्न और तृणसमूहका ढिगला पर्वतोसे भी बड़ा किया हुआ है ॥ ८०९॥ आसाढ पढमपक्खे, वीयाए अस्थि तत्थ सुमुहुत्तो । कल्ले सा पुण वीया, मग्गो पुण जोयणे तीसं ८१० __अर्थ-आषाढ वदी दूजका उस नगरमें विवाहका मुहूर्त है वह द्वितीया कल्ल है और मार्ग यहांसे तीस योजन हैं ॥८१०॥ हतं सोऊणं कुमरेण, तस्स पहियस्स दावियं झत्ति । नियतुरयकंठकंदल,-भूसणसोवन्नसंकलयं ॥८११॥ ता अर्थ-वह पथिकका वचन सुनके कुमरने उस पथिकको शीघ्र अपने घोड़े के कंठका सोनेका कंदोला दिया ॥८११॥ कुमरो य नियावासं, पत्तो चिंतेइ पच्छिमनिसाए । काऊण खुजरूवं, तं पिह गंतूण पिच्छामि ॥८१२॥ | अर्थ-और कुमर अपने आवासमें आया और रात्रिके पश्चिम प्रहरमें विचारे कूबड़ेका रूपकरके वह स्वयंवर मंडप कादेखू ॥ ८१२॥ ASSASSA*** For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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