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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MAMAKALUMAM तत्थ टिओ सिरिपालो, पुन्नविसालो महाभुयालोय। गुणसुंदरीसमेओ, निच्चंपि करेइ लीलाओ ॥७९९॥ अर्थ-उस भवनमें रहा भया श्रीपालकुमार गुणसुंदरी अपनी स्त्रीसहित निरंतर लीलाक्रीडाकरे कैसा है श्रीपाल है|पुण्य है विशाल नाम विस्तीर्ण जिसके और प्रचंड है भुजदंड जिसका ॥ ७९९ ॥ अन्नदिणे नयराओ, रयवाडीए गएण कुमरेण । दिवो एगो पहिओ, विसेसवत्तं च सो पुट्रो॥८॥ | अर्थ-अन्यदिनमें कुमर नगरके बाहर राजवाड़ीमें गया वहां एक पथिक याने काशीदको देखा और विशेषवार्ता | पूछी ॥ ८००॥ सो भणइ देव कुंडिण,-पुराओ पट्टावणीइ पट्टविओ । नयरंमि पइटाणे, इब्भेण धणावहेणाहं ॥८०१॥ | अर्थ-तब वह पथिक कहे हे देव धनाढ्य धनावह नामके सेठने मेरेको कुंडनपुर नगरसे प्रतिष्ठानपुर नगर दिनके | नियमसे भेजा है ॥ ८०१॥ आगच्छंतेण मए, कंचणपुरनामयंमि नयरंमि । जं अच्छरियं दिटुं, पुरिसुत्तम! तं निसामेह ॥८०२॥ __अर्थ-आते भए मैंने कांचनपुर नगरमें हे पुरुषोत्तम जो आश्चर्य देखा वह तुम सुनो ॥ ८०२॥ तत्थत्थि कंचणपुरे, राया सिरि वज्जसेणनामुत्ति तस्सत्थि पट्टदेवी कंचणमालत्ति विक्खाया ॥ ८०३॥ ISESSAAR-584ESORIS For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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