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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir KI श्रीपालचरितम् वय कम्माई, नवतत्ताइं च दसविहो धम्मो। एगारसपडिमाओ, बारसवयाइं गिहीणं च ॥६४॥ भाषाटीका| अर्थ-ज्ञानावरणी १ दर्शनावरणी २ वेदिनी ३ मोहनी ४ आयु ५ नाम ६ गोत्र ७ अंतराय ८ ये कर्म आठ हैं सहितम्. जीवाजीवादि नवतत्व क्षमामार्दवादि दशप्रकारका यतिधर्म दर्शनादि ११ श्रावककी प्रतिमा और स्थूलप्राणातिपात |विरमणादि १२ व्रत ॥ ६४॥ है इच्चाइ वियाराचार, सारकुसलत्तणं च संपत्ता । अन्ने सुहमवियारेवि, मुणइ सा निययनामं च ॥६५॥ | अर्थ-मदनसुंदरी कन्या इत्यादि विचार आचारोका रहस्यभूतपदार्थोमें कुशलपना प्राप्त भई औरभी इन्होंसे |भिन्न सूक्ष्मविचारोंको अपने नामके जैसा जाने ॥६५॥ कम्माणं मुलुत्तर, पयडीओ गणइ मुणइ कम्मठिइं । जाणइ कम्मविवागं, बंधोदयदीरणं संतं ॥६६॥ | अर्थ-और मदनसुंदरी कन्या कोंकी ८ मूल प्रकृति तथा १५८ उत्तर प्रकृति गिने और कर्मोंकी स्थिति ३० कोड़ाकोड़ सागरादिक जाने और कर्मोंका विपाक शुभ अशुभ फलरूप जाने और कर्मोंका बंध, उदय, उदीरणा सत्ताका स्वरूप जाने ॥६६॥ जीसे सो उवज्झाओ, संतो दंतो जिइंदिओ धीरो। जिणमयरओ सुबुद्धि, साकिं न हु होइ तस्सीला६७ ॥९॥ अर्थ-जिसका वह सुबुद्धि नाम श्रावक उपाध्याय है वा मदनसुंदरी कन्या गुरुके तुल्य स्वभाववाली क्या न होवे । SARSANSLSALUSALS For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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