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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपि तु होवेही ॥ कैसा है पाठक क्षमायुक्त तथा मनको दमनेवाला जितेन्द्रिय धैर्यवान, बुद्धिवान् जिन मतमें रक्त | ऐसा जिसका गुरु वा वैसी गुणवती कैसे न होवे ॥ ६७॥ सयल कलागम कुसला, निम्मल सम्मत्त सीलगुण कलिया।लज्जा सज्जा सामयण, सुंदरी जुवणं पत्ता॥ ___ अर्थ-मदनसुंदरी कन्या यौवन अवस्था प्राप्त भई कैसी है सम्पूर्णकलाशास्त्रोंमें निपुण है और निर्मल सम्यक्त्व 5/शील गुणोंसे युक्त लज्जासे परिपूर्ण ऐसी मदनसुंदरी कन्या वाल्य अवस्थाको छोड़के यौवन अवस्था पाई ॥ ६८॥ 18 ( अन्न दिणे अभितर, सहानिविटेण नरवरिंदेण। अज्झावय सहियाओ, अणावियाओ कुमारीओ॥६९॥ __अर्थ-अन्य दिनके विषय अंदरकी सभामें बैठा हुआ राजाने पाठक सहित दोनों कुमरियोंको अपने पासमें बुलाई ६९ शविणओणयाओ ताओ, सरूव लावन्न क्खोहिय सहाओ। विणिवेसियाउ रन्ना, नेहेणं उभयपासेसु॥७०॥ __ अर्थ-विनयसे नम्र और अपने रूप लावण्यसे चमत्कार प्राप्त किया है सभाके लोकोको जिन्होंने ऐसी दोनों कन्याकू राजाने स्नेहसे अपने दोनों तरफ पासमें बैठाई ॥ ७० ॥ हरिसवसेणं राया, तासिं बुद्धी परिक्खणनिमित्तं । एगं देई समस्सापयं, दुन्हं पि समकालं ॥७१॥ I अर्थ-राजा हर्षित होके दोनों कन्याकी बुद्धिकी परीक्षाके निमित्त दोनों कन्याको समकाल नाम एकसमय एक समस्या पद देवे ॥ ७१॥ OSASUSAHAA** For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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