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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | अर्थ-जैसा गुरू होवे वैसाही प्रायः शिष्यमें गुणका सम्बन्ध होवे इस कारणसे सुरसुंदरी कन्या मिथ्यादृष्टिनी है INऔर उत्कृष्ट अभिमान युक्त है मन जिसका ऐसी भई ॥६॥ तह मयणसुंदरी विह, एयाओ कलाओलीलमित्तण। सिक्खेड विमलपन्ना, धन्ना विणएण संपन्ना॥६॥ 81 अर्थ-तैसेही मदनसुंदरीभी यह कही भई लेखनादि कला लीलामात्रसे पढ़ती भई कैसी है मदनसुंदरी निर्मल है तू बुद्धि जिसकी और धन्या है धर्म धनको जिसने पाया है और विनय युक्त है ॥ ६१॥ जिणमयनिउणेण झावएण,सामयणसुंदरीबाला। तह सिक्खविया जह, जिणमयंमि कुसलत्तणं पत्ता ६२ | अर्थ-जिनमत विषयमें निपुण अध्यापकने मदनसुंदरी कन्याको वैसी सिखाई कि जिससे जैनधर्मके पदार्थोंमें 5 निपुण भई ॥ ६२॥ एगासत्ता दुविहो नओ य, कालत्तयं गइचउक्कं । पंचेव अस्थिकाया, दवछक्कं च सत्तनया ॥ ६३ ॥ | अर्थ-सर्व पदार्थों में एकही सत्ता अस्तित्व है और दो प्रकारका नय द्रव्यास्तिक १ पर्यायास्तिक २ तथा काल ३ भूत १ वर्तमान २ भविष्यत् और गति ४ नरकगति तिर्यञ्चगति मनुष्यगति देवगति तथापांच अस्तिकाय धर्मास्तिकाय १ अधर्मास्तिकाय २ आकाशास्तिकाय ३ पुद्गलास्तिकाय ४ जीवास्तिकाय और ६ द्रव्य धर्मास्तिकायादि ५ और छट्ठा काल और ७ नय नैगम १ संग्रह २ व्यवहार ३ ऋजुसूत्र ४ शब्द ५ समभिरूढ़ ६ एवंभूत ७॥ ६३ ॥ AASAASAASAASAASAAN For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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