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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीपाल - चरितम् ॥ ९३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तो विज्झाहरधूया, कहेइ सर्व्वपि कुमरचरियं जा । ताव निवो साणंदो, भणइ इमो भइणिपुत्तो मे ७३५ अर्थ - तदनंतर विद्याधरराजाकी पुत्री मदनमंजूषाने सर्व कुमरका चरित कहा कुमर समुद्रमें पड़ा वहां तक उतने वसुपाल राजा आनंदसहित बोले यहकुमर मेरी बहिनका पुत्र भानजा है ॥ ७३५ ॥ गाढपरं संतुट्ठो, राया कुमरस्स देई बहुमाणं । डुंबं सकुडंबंपि हु, ताडावइ गरूयरोसेण ॥ ७३६ ॥ अर्थ —तदनंतर अत्यन्त संतुष्टमान भया राजा कुमरका बहुत सत्कार करे और बहुत क्रोधसे कुटुंबसहित डोमको अपने सेवकोंके पास पिटवावे ॥ ७३६ ॥ डुबो कहे सच्चं, सामिय कारावियं इमं सवं । एएण सत्थवाहेण, देव दाऊण मज्झ धणं ॥ ७३७ ॥ अर्थ - तब डोम सत्य कहे हे स्वामिन् हे देव हे महाराज इस सार्ववाणिएने मेरेको धन देके यह सर्व अकार्य कराया सर्व अनर्थका मूल यह सार्थवानिया है ॥ ७३७ ॥ तो राया धवलंपि हु, बंधावेऊण निविडबंधेहिं । अप्पेइ मारणत्थं, चंडाणं दंडपासीणं ॥ ७३८ ॥ अर्थ - तदनंतर राजा धवल सार्थवाहको मजबूत बंधनोंसे बंधवाके अत्यन्त दुष्ट कोटवाल पुरुषों को मारनेके वास्ते देवे ॥ ७३८ ॥ For Private and Personal Use Only भाषाटीकासहितम्. ॥ ९३ ॥
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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