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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbalirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 9649*** ******** कुमरो निरुवमकरुणारस,-वसओ नरवराउ कहकहवि । मोयावइ तं धवलं, डंबं च कुटुंबसंजुत्तं ३९/21 ___ अर्थ-कुमार श्रीपाल उपमा रहित जो करुणारस उसके वशसे धवलसेठको कोईप्रकारसे राजाके पास छुडवावे और कुटुंबसहित डोमकोभी छुडवावे ॥ ७३९ ॥ मायंगाहिवइत्तं, पुट्ठो नेमित्तिओ कहइ एवं । मायंगा नाम गया, तेसिं एसो अहिवइत्ति ॥७४०॥ ___ अर्थ-वादमें राजाने नेमित्तिएको मातंगाधिपतिका अर्थ पूछा तब नेमित्तिया कहे हे महाराज महामातंग नाम हाथी उन्होंका अधिपति नाम स्वामी ॥ ७४०॥ संपूइऊण राया, सम्म नेमित्तियं विसजेइ । भयणीसुयंति धूया, वरंति कुमरं च खामेइ ॥ ७४१ ॥ दूा अर्थ-राजा वसुपाल नेमित्तिएका वस्त्राभरर्णादिकसे सत्कार करके विसर्जन करे और कुमर बहिनका पुत्र है और पुत्रीका वर है इस कारणसे विशेष करके खमावे ॥ ७४१॥ राया भणेइ पिच्छह अहह अहो उत्तमाण नीयाणं । केरिसमंतरमेयं, अमियविसाणंव संजायं ७४२ | अर्थ-राजा कहे अहह इति खेदे अहो इति आश्चर्ये अहो लोको तुम देखो देखो उत्तम पुरुष और नीच पुरुषों में यह | कितना अंतर है अमृत और जहरके जैसा अंतर है ॥ ७४२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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