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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेहिं गंतूण तओ तर्हि, भणियाओ नरवरिंदधूयाओ । पइणो कुलकहणत्थं, वच्छा आगच्छह दुयंति ७३१ अर्थ- वह प्रधान पुरुष वहां जाहाजों में जाके उन राजपुत्रियोंको इस प्रकारसे कहा हे वत्से पुत्रियो तुम अपने पतिका कुल कहनेके लिये शीघ्र आओ ॥ ७३१ ॥ तं सोऊणं ताओ, मयणाओ हरिसियाओ चित्तंमि । तेण मणवल्लहेणं, नूणं आणाविया अम्हे ॥७३२ ॥ अर्थ- वह प्रधान पुरुषोंका वचन सुनके दोनों मदना मनमें हर्षित भई और विचारतीं भई अपने भर्तारने अपनेको बुलाई हैं ऐसा विचारके हर्षित भई ॥ ७३२ ॥ सिवियाए चडियाओ, संपत्ता नरवरिंदभवणंमि । दहूण पाणनाहं, जाया हरिसेण पडिहत्था ॥ ७३३॥ अर्थ - तदनंतर पालकी में बैठके दोनों स्त्रियों राजा वसुपालके भवनमें प्राप्त भई और वहां अपने प्राणनाथ भर्तारको | देखके आनंद व्याप्त भई अर्थात् परिपूर्ण आनंद पाया ॥ ७३३ ॥ रन्नावि पुच्छियाओ, वच्छा भंजेह अम्हसंदेहं । को एसो वृत्तंतो, कहेह आमूलचूलंति ॥ ७३४ ॥ अर्थ - राजाने भी इस प्रकारसे पूछा हे वत्से हे पुत्रियो तुम हमारा संदेह दूरकरो यह क्या वृतान्त है यह क्यावात है मूलसे लेके चूल पर्यंत कहो ॥ ७३४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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