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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ - उसके अनंतर उपकार करनेमें तत्पर कुमर उस धवल सेठको अपने पिताके समान कहके याने यहमेरे पिताके तुल्य है ऐसा कहके राजासे छुड़ाया और अपने ठिकाने जानेकी आज्ञा दिलाई ॥ ५९५ ॥ अह अन्न दिने कुमरो, विन्नत्तो ? वाणिएण एगेण । सामिय पूरियपोया, अम्हे सवेवि संवहिया ५९६ अर्थ - अथ अन्य दिनमें एक वानिएने कुमरसे वीनती किया हे स्वामिन् हे महाराज क्रियाणोंसे जहाज भरे हैं। यहां से चलने के वास्ते सब लोग तय्यार हुए है अर्थात् जो क्रियाणा लाएथे वह सब यहां बेचा है यहां सम्बन्धी क्रियाणा खरीदकर जहाज तय्यार किए हैं हम लोग देश जानेके वास्ते तय्यार भए हैं । ५९६ ॥ तो जह चिय कुसलेणं, अम्हे तुम्हेहिं आणिया इहयं । तह नियदेसंमि पुणो, सामिय तुरियं पराणेह ॥ ५९७ ॥ अर्थ - तिस कारण से जैसे आप कुशलसे हमको यहां लाएहो उसी प्रकारसे हे स्वामिन् अपने देश शीघ्र पहुंचाओ ॥५९७॥ तो कुमरो नरनाहं, आपुच्छइ निअयदे सगमणत्थं । कह कहवि सो विसज्जइ, काऊणं गुरुयसम्माणं ५९८ अर्थ - तदनंतर कुमर राजासे अपने देश जानेके लिए पूछे तब राजा बहुत सत्कार करके देश जानेकी आज्ञा मुश्किलसे देवे ॥ ५९८ ॥ दाउं सुयाइसिक्खं, कुमरस्स भलाविऊण धूयं च । पोयंमि समारोवि अ, कुमरं वलिओ नरवरिंदो ॥ ५९९॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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