SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuti Gyanmandir श्रीपाल- __ अर्थ-राजा पुत्रीको सिखावन देके मेरी पुत्रीको अच्छी तरहसे रखनी इत्यादि कथन पूर्वक पुत्री कुमरको सौंपके भाषाटीकाचरितम् पुत्री सहित कुमरको जहाजमें चढाके राजा पीछे चले स्वस्थान प्रति ॥ ५९९॥ दिसहितम् कुमरो बहमाणेणं, धवलंपि ह सारसारपरिवारं । नियपोयंमि निवेसइ, सेसजणे सेसपोएस ॥६००। ॥७७॥ , अर्थ-कुमर सार २ परिवार और धवलसेठको आदर सहित अपने जहाजमें बैठावे और लोगोंको दूसरे जहाजोंमें | बैठावे ॥६००॥ तपत्थाणमंगलंमी, पहयाओ दुंदुहीउ भेरीओ। सज्जीकया य पोया, चल्लंति महल्लवेगेणं ॥६०१॥ ___ अर्थ-प्रस्थान मंगलके समयमें दुंदभी नामकी भेरिओं बजाई गई और सजकिए हुए जहाज बहुत वेगसें चलते हैं ॥६०१॥ पोयारूढो कुमरो, जलहिंमिवि अणुहवेइ लीलाओ।जह पालयाहिरूढो, देविंदो गयणमग्गेवि ॥६०२॥ ___ अर्थ-अथ जहाजपर बैठा हुआ कुमर समुद्रमें लीला(क्रीडा) अनुभवे कैसे सों कहते हैं जैसे पालक विमानमें बैठा हुआ देवेन्द्र आकाशमार्गमें चलता हुआ लीला अनुभवे वैसा ॥ ६०२॥ प्रदट्टण कुमरलीलं, रमणीजुयलं च रिद्धिवित्थारं । धवलोवि चलियचित्तो, एवं चिंतेउ माढत्तो ॥६०३॥ | अर्थ-तव धवलसेठ कुमरकी लीला तथा दो २ स्त्री और ऋद्धिका विस्तार देखके विशेष करके चलचित भया ॥७७॥ ऐसा इस प्रकारसे विचारने लगा ॥ ६०३ ॥ RICALCALCOMCAM For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy