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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपाल- अर्थ-उस सार्थ वाणिएको मैंने बांधा है उसके लिए क्या आज्ञा है क्या शिक्षा दी जाने तब राजा बोले आज्ञा भाषाटीका चरितम् दूभंग करे उसका प्राण लेना ॥ ५९१ ॥ | सहितम्. ॥७६ ॥ कुमरोभणेइ मा मा, मारणादेसमिह ठिओ देसु । सावज्जवयणकहणेवि, जिणहरे जेण गुरुदोसो ५९२/ | अर्थ-ऐसा राजाका वचन सुनके कुमर कहे हे महाराज इस जिनमंदिरकी भूमिमें रहे हुए मारनेकी आज्ञा मत देओ जिस कारणसे जिनमंदिरमें सदोषवचन कहने में भी महादोष होवे हैं ॥ ५९२ ॥ तो राया छोडाविय, आणावइ जाव निययपासंमि । तं दट्टणं कुमरो, उवलक्खइ धवलसत्थवइ ॥५९३॥ ४ FI अर्थ-तदनंतर राजा उसको छुडवाके जितने अपने पासमें बुलवावे उतने कुमर श्रीपाल देखके धवल सार्थ वाहको ६ पहिचाने यह तो धवल सार्थवाह है ऐसा जाने ॥ ५९३ ॥ चिंतइ मणे कुमारो, अहह कहं एरिसंपि संजायं। अहवा लोहवसेणं, जीवाणं किं न संभवइ॥ ५९४॥ ___ अर्थ-कुमर मनमें विचारे अहह इति खेदे ऐसा अकार्य कैसे भया अथवा जीवोंके लोभके वशसे क्या २ नहीं संभवे है अर्थात् सब अकार्य संभवे है ।। ५९४ ॥ 5 ॥७६॥ तं नियजणयसमाणं, कहिउं मोआविओ नरिंदाओ।उवयारपरो कुमरो, विसज्जए निययठाणे य॥५९५॥ ACADREAUCRACK CARRORSCOPE For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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