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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatih.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir श्रीपाल भाषाटीका. |सहितम्. चरितम् ॥६१॥ अर्थ-ऐसा विचारके वह धवलसेठ कुमरके पास जाके भाडा मांगा तब कुमरभी दसगुना भाडा दिलावे हि यह आश्चर्यमें है शास्त्रकार कहते हैं कुमर और सेठ इनदोनोंके आपसमें कितना अंतर है अर्थात् बहुत अंतर है ॥ ४७३ ॥ आरोविऊण कुमरं, तत्थ महापवहणे सपरिवारं। मुकलाविऊण धूयं, महकालो जाइ नियनयरिं ४७४ ___ अर्थ-बाद महाकाल राजा उस महानुंग जहाजपर परिवार सहित कुमरको चढ़ाके पुत्रीका मुकलावा करके मुकलावा यह देशी वचन है कुमरीकों भौला करके राजा अपनी नगरी जावें ॥ ४७४ ॥ पोएण जणा जलहि, लंघिय पावंति रयणदीवं तं । जह संजमेण मुणिणो, संसारं तरिय सिवठाणं ४७५] 5 अर्थ-लोक जहाजोंसे समुद्रको उलंघके रत्नद्वीप पहुंचे यहां दृष्टांत कहते हैं जैसे मुनि संयमसे संसार समुद्रको तिरके शिवस्थान मुक्तिपद पाते हैं वैसा ॥ ४७५ ॥ तत्थ य पोए तडमंदिरेषु, गुरुनंगरेहिं थंभित्ता। उत्तारिऊण भंडं पडमंडवमंडले ठवियं ॥ ४७६ ॥ | अर्थ-वे द्वीपमें तट मंदिरमें जहाजोंको नंगर गिराके खड़े करके जहाजों के अंदरसे क्रियाणा उतारके पट मंडपयाने तंबुओंमें रक्खै ॥ ४७६ ॥ कुमरोवि सपरिवारो, पडवंसावासमज्झमासीणो। पिक्खेइ नाडयाई, विमाणमज्झट्रियसुरुव For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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